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अधिक प्रसिद्ध हैं । भिक्षु सिद्धार्थ' और भिक्षुजगदीश काश्यप जैसे भारतीय बौद्ध विद्वानों ने भी इसी मत का प्रतिपादन किया है । जेम्स एल्विस और चाइडर्स की यह मान्यता है कि 'मागधी' ही पालि भाषा का मौलिक और सबसे अधिक उपयुक्त नाम है । जेम्स एल्विस के मतानुसार बुद्धकालीन भारत में १६ प्रादेशिक बोलियाँ प्रचलित थीं । इनमें 'मागधी' बोली में, जो मगध में बोली जाती थी, भगवान् बुद्ध ने उपदेश दिये थे । विंडिश ने भी पालि के 'मागधी' आधार को सिद्ध करने का प्रयत्न किया है । विंटरनित्ज़ का मत भी इसी के समान है। उनका कहना है कि पालि एक साहित्यिक भाषा थी, जिसका विकासअनेक प्रादेशिक बोलियों के समिश्रण से हुआ था, जिनमें 'प्राचीन मागधी' प्रधान थी । ग्रियर्सन ने पालि
मागधी आधार को तो स्वीकार किया है, किन्तु पालि में तत्कालीन पश्चिमी वोलियों के प्रभाव को देखकर उन्हें यह मानना पड़ा है कि पालिका आधार विशुद्ध मागधी न होकर कोई पश्चिमी बोली है। इसी को सिद्ध करने के लिए उन्होंने यह कल्पना कर डाली है कि पालि का विकास मागधी भाषा के उस रूप से हुआ जो तक्षशिला विश्वविद्यालय में बोला जाता था और जिसमें ही त्रिपिटक का संस्करण वहाँ किया गया था । किन्तु न तो मागधी भाषा के वहाँ शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रयुक्त होने की और न उसमें त्रिपिटक के वहाँ संकलित होने की कोई अकाट्य युक्ति ग्रियर्सन या अन्य किसी विद्वान् ने अभी तक दी है । ५ जर्मन विद्वान् गायगर का मत उपर्युक्त सभी मतों से अधिक परिपूर्ण और ग्राहय है। उनके अनुसार पालि मागधी भाषा का ही एक रूप है, जिसमें भगवान् बुद्ध ने उपदेश दिये थे । यह भाषा किसी जनपद - विशेष की बोली नहीं थी, बल्कि सभ्य समाज में बोले जाने वाली एक सामान्य भाषा थी, जिसका विकास बुद्ध-पूर्व युग से हो रहा था । इस प्रकार की अन्तर्प्रान्तीय भाषा में स्वभा
१. बुद्धिस्टिक स्टडीज़ (डा० लाहा द्वारा सम्पादित ) पृष्ठ ६४१-५६ २. पालि महाव्याकरण की वस्तुकथा ।
३. इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १३
४. भांडारकर कमेमोरेशन वोल्यूम, पृष्ठ ११७- १२३ ( ग्रियर्सन का 'दि होम ऑव लिटररी पालि' शीर्षक लेख)
५. यह आलोचना डा० कीथ की है। देखिये उनका 'दि होम अाँव पालि' शीर्षक निबन्ध, 'बुद्धिस्टिक स्टडीज' (डा० लाहा द्वारा सम्पादित ) पृष्ठ ७३९