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fafa - मो- रोन् या विनय- माता - वण्णना ( २ ) भतो - रोग - रोन् या मातिका अथवा मात्रिका-वण्णना (३) जैन्-कैन्- रोन् (पासादिका - वण्णना) (४) सब्बतरोन् (सब्बत्थि - वण्णना) (५) म्यो-र्यो- रोन् या पाकटवण्णना | चीनी भाषा में 'रोन्' 'विभाषा' या 'वण्णना' (वर्णन, व्याख्या) को कहते हैं । 'जैन्-कैन्- रोन् ' बुद्धघोषकृत 'समन्तपासादिका' (विनय-पिटक की अट्ठकथा ) का चीनी अनुवाद है । पहले यह 'धम्मगुत्तिक' सम्प्रदाय के विनय 'शिवन्-रित्सु ' की व्याख्या समझी जाती थी । किन्तु जापानी विद्वान नगई ने इस भ्रम का निवारण कर दिया है ।" चीनी और जापानी बौद्ध धर्म की दृष्टि से 'धम्मगुत्तिक' ( धर्मगुप्तिक) सम्प्रदाय का विनय-पिटक शिबुनरित्सु ही अधिक महत्त्वपूर्ण है । वहाँ के रिश्शू सम्प्रदाय ( विनय - सम्प्रदाय ) का यही आधारभूत ग्रन्थ है । पालि विनय पिटक के साथ चीनी विनय-पिटक की तुलना के प्रसंग में इसी संस्करण को लिया जा सकता है और वाकी छोटे-मोटे विभेदों को, जो बहुत अल्प हैं, अलग से दिखाया जा सकता है । यहाँ हमें तुलना केवल 'शिक्षापदों' या विनय-सम्बन्धी नियमों के विषय में करनी है, जो ही विनयपिटक के आधारभूत विषय हैं, चाहे वह किसी सम्प्रदाय या संस्करण का हो । पालि विनय-पिटक के शिक्षापदों की संख्या २२७ है, जिनकी गणना इस प्रकार है-
१. पाराजिका
२. संघादिसेसा
३. अनियता धम्मा
४. निस्सग्गिया पाचित्तिया धम्मा
५. पाचित्तिया धम्मा
६. पटिदेसनिया धम्मा
७. सेखिया धम्मा
८. अधिकरणसमथा धम्मा
४
१३
२
३०
९२
४
७५
७
२२७
१. देखिये बुद्धिस्टिक स्टडीज (डा० लाहा द्वारा सम्पादित ) पृष्ठ ३६८ में नगई के 'बुद्धिस्ट विनय डिसिप्लिन' शीर्षक लेख का अंश ।