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। २८८ ) जातक आदि अनेक जातकों में है। इस प्रकार बुद्धकालीन राजाओं, गज्यों, प्रदेगों, जातियों, ग्रामों, नगरों आदि का पूरा विवरण हमें जातकों में मिलता है ।१ तिलमुटि जातक (२५२) में हमें बुद्धकालीन शिक्षा, विशेषतः उच्च शिक्षा, का एक उत्तम चित्र मिलता है। संखपाल जातक (५२४) और दरीमग्ख जातक (३७८) में मगध के राजकुमारों की तक्षशिला में शिक्षा का वर्णन है । शिक्षा के विधान, पाठ्य-क्रम, अध्ययन-विषय उनके व्यावहारिक और सैद्धान्तिक पक्ष, निवास, भोजन, नियन्त्रण आदि के विषय में पूरी जानकारी हमें जातकों में मिलती है। बनारस, राजगृह, मिथिला, उज्जैनी, श्रावस्ती. कौगाम्बी, तक्षशिला आदि प्रसिद्ध नगरों को मिलाने वाले मार्गों का तथा स्थानीय व्यापार का पूरा विवरण हमें जातकों में मिलता है। कागी मे चेदि जाने वाली सड़क का उल्लेख वेदभ जातक (४८) में है। क्या क्या नाना पेशे उस समय लोगों में प्रचलित थे, कला और दस्तकारी की क्या अवस्था थी तथा व्यवमाय किस प्रकार होता था, इसके अनेक चित्र हमें जातकों में मिलते है । बावेक जातक (३३१) और मुमन्धि जातक (३६०) से हमें पता लगता है कि भारतीय व्यापार विदेशों से भी होता था और भारतीय व्यापारी सवर्ण-भूमि (बरमा से मलाया तक का प्रदेश ) तक व्यापार के लिए जाते थे। भरुकच्छ उस समय एक प्रसिद्ध वन्दरगाह था। जल के मार्गों का भी जातकों में स्पष्ट उल्लेख है। लौकिक विश्वामों आदि के बारे में देवधम्म जातक (६) और नलपान जातक (२०) आदि में ; समाज में स्त्रियों के स्थान के सम्बन्ध में अण्डभूत जातक (६२) आदि में ; दासों आदि की अवस्था के सम्बन्ध में कटाहक जातक (१२५) आदि में ; मुगपान आदि के सम्बन्ध में सुरापान जातक (८१) आदि में ; यज्ञ में जीव-हिमा के सम्बन्ध में दुम्मेध जातक (५०) आदि में ; व्यापारिक संघों
१. डा० विमलाचरण लाहा का "Geography of Early Buddhism" बुद्धकालीन भूगोल पर एक उत्तम ग्रन्थ है, जिसमें जातक के अलावा त्रिपिटक के अन्य अंशों से भी सामग्री संकलित की गई है। डा० लाहा के 'Some Kshatriya Tribes of Ancient India', 72T 'Ancient Indian Tribes' आदि पालि त्रिपिटक पर आधारित ग्रन्थ बुद्धकालीन भारत के अनेक पक्षों का प्रामाणिक विवरण उपस्थित करते हैं।