________________
( २७२ ) संख्या के बम से है, जो कृत्रिम है। फिर संकलन में भी कहीं कुछ कमियाँ रह ही गई हैं। स्थविरिणियों के साथ पुरुषों के संवाद भी 'थेरीगाथा' में कहीं कहीं पाये जाते ही है। दोनों की कथा भी कहीं कहीं मिलती दिखाई देती है। उदाहरणार्थ थेरीगाथा (२०४-२१२) में बड्ढ की माता उमे ज्ञान-मार्ग पर लगाती है और थेरगाथा (३३५-३३९) में वह उसे धन्यवाद देता है। जिस प्रकार तीन टेढी वस्तुओं (हसिया, हल और कुदाल) से मुक्ति पाकर भिक्षु प्रसन्न है। उसी प्रकार ओखल से, मूसल मे और अपने कुबड़े स्वामी से मुक्ति पाकर भिक्षुणी प्रसन्न है। इसी प्रकार के वर्णनों से विन्टरनित्ज़ को गाथाओं के सम्मिलित होने का भ्रम हो गया है । गाथाओं के संकलन में भले ही कहीं कोई प्रमाद हो, पर थेर और थेरी गाथाओं को मूलतः उन भिक्षु और भिक्षुणियों की रचनाएँ ही माना जा सकता है, जिनके नामों से वे सम्बन्धित है। जातक
जातक खुदक-निकाय का दसवाँ प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जातक को वस्तुतः ग्रन्य न कह कर ग्रन्थ-समूह ही कहना अधिक उपयुक्त होगा। जैसा हम आगे देखेंगे,
१. असितासु मया नंगलासु मया खुद्दकुद्दालासु मया। गाथा ४३ (थेरगाथा) २. उदुक्खलेन मुसलेन पतिना खुज्जकेन च। गाथा ११ (थेरीगाथा) ३. भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने जातक का हिन्दी में अनुवाद किया है। हिन्दी
साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, से वह तीन भागों में प्रकाशित हो चुका है। जातक (प्रथम खंड), १९४१; जातक (द्वितीय खंड) १९४२; जातक (तृतीय खंड) १९४६ । प्रथम खंड में जातक-संख्या १-१००; द्वितीय खंड में जातक-संख्या १०१-२५० और तृतीय खंड में जातक-संख्या २५१-४०० अनुवादित हैं। चतुर्थ खंड प्रेस में है। राय साहब ईशानचन्द्र घोष का बँगला अनुवाद प्रसिद्ध है। अंग्रेजी में कॉवल के सम्पादकत्व में ६ जिल्दों में जातक का अनुवाद प्रकाशित हो चुका है। सातवीं जिल्द में अनक्रमणी है। कॉवल के अतिरिक्त चामर्स आदि अन्य चार विद्वानों ने इस अनुवाद-कार्य में भाग लिया है। जातक का यह सम्पूर्ण अंग्रेजी अनुवाद केम्ब्रिज से १८९५-१९१३ में प्रकाशित हुआ था। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विद्वानों ने जातक के कुछ अंशों का अनुवाद भी