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( २०६ ) थेरी--गाथाओं के बाद अपदान का भी प्रणयन निश्चित है। अपदान के दो भाग हैं, थेर अपदान और थेरी अपदान। इन दोनों भागों में क्रमशः भिक्षु और भिक्षुणियों के पूर्व जन्म की कथायें हैं । इस प्रकार यह पूरा ग्रंथ थेर और थेरीगाथाओं का पूरक ही कहा जा सकता है। अपदान निश्चयत: अशोककालीन रचना है। इसका कारण यह है कि उसमें कथावस्तु का निर्देश हुआ है, जो निश्चयतः तृतीय संगीति के समय लिखी गई । विमानवत्यु और पेतवत्थ भी उत्तरकालीन रचनाएँ हैं। इनमें क्रमशः देव-लोकों और प्रेतों के वर्णन हैं, जो स्थविरवादी बौद्ध धर्म के प्रारम्भिक स्वरूप से बहुत दूर हैं। विमानवत्थु में तो एक ऐसी घटना का भी वर्णन है जो उसी के वर्णन के अनुसार पायामि राजन्य के १०० साल बाद हुई।' पायासि की मृत्यु भगवान् बुद्ध से कुछ साल बाद हुई थी, अतः जिस घटना का विमानवत्थ में वर्णन है वह बुद्ध-निर्वाण के सौ से कुछ अधिक साल बाद ही हई होगी। इस प्रकार विमानवत्थु की रचना तृतीय सगीति के कुछ पहले की ही अधिक से अधिक हो सकती है। इसी प्रकार पतवत्थ भी अशोककालीन रचना है। उसमें 'मौर्य-अधिपति' का निर्देश हआ है२ जिसका अभिप्राय 'अट्ठकथा' के अनुसार धम्माशोक से है । 'पटिसम्भिदा-मग्ग' की रचना अभिधम्म-पिटक की शैली में हुई है, अतः वह भी इसी युग की रचना है। इस प्रकार प्रस्तुत विवेचन के आधार पर खुद्दक-निकाय के ग्रन्थों का काल-क्रम तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है, जो इस प्रकार दिखाया जा सकता है--
१ धम्मपद, सुत्त-निपात, उदान, इतिवुनक। २ जातक, थेरगाथा, थेरीगाथा।
१. मानुस्सकं वस्ससतं अतीतं यदग्गे कायम्हि इधूपपन्नो । पृष्ठ ८१ (पालि
टैक्स्ट सोसायटी का संस्करण) २. राजा पिंगलको नाम सुरानं अधिपति अहुमोरियानं उपट्ठानं गन्त्वा सुरळं
पुनरागमा। ३. मोरियानंति मोरियराजूनं धम्मासोकं सन्धाय वदति । पृष्ठ ९८ (पालि- ' टैक्स्ट सोसायटी का संस्करण)