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दीघ-निकाय के समान मज्झिम-निकाय में भी छठी और पाँचवीं शताब्दी ईसकी पूर्व के भारतीय समाज की सामान्य अवस्था का अच्छा पता चलता है। उसके अनेक वर्णनों में तत्कालीन भौगोलिक और ऐतिहासिक तथ्यों की महत्त्वपूर्ण सूचना मिलती है। मज्झिम-निकाय में वर्णित भगवान् के उपदेश जिन जिन प्रदेशों, नगरों, निगमों (कस्बों) ग्रामों या वन-प्रदेशों में हुए उनकी एक सूची बनाई जाय तो उस समय की भौगोलिक परिस्थितियों को समझने में हमारी बड़ी सहायक होगी। अंग, बंग, योनकम्बोज, भग्ग, काशी, कुरु, कोशल जैसे प्रदेश, वैशाली, चम्पा, पाटलिपुत्र, कपिलवस्तु, राजगृह, नालन्दा, श्रावस्ती, कौशाम्बी, वाराणसी जैसे नगर, शाक्यों के मेदलुम्प, कोलियों के हलिहवसन, कुरुओं के थुल्लकोट्ठित आदि कस्बे तथा दण्डकारण्य, कलिङ्गारण्य जैसे वन-प्रदेश, जो बुद्ध-चरणों की रज से अंकित हुए थे, हमारे लिये एक गौरवमयी स्मृति का सन्देश देते हैं। कोसल-प्रदेश के दो मुख्य नगरों श्रावस्ती और साकेत के बीच डाक (रथ विनीत) का सम्बन्ध था, यह हम रथ विनीत-सुत्तन्त (मज्झिम १।३।४) से जानते हैं। बुद्धकालीन भारत का पूरा धार्मिक वातावरण मज्झिम-निकाय में उपस्थित है। ब्राह्मणों के जीवन, कर्मकांड और सिद्धान्त, उनके मन्त्रकर्ता ऋषि, वाद-परम्परा और पौरोहित्य, सभी का मूर्तिमान् चित्र हमें यहाँ मिलता है। इस दृष्टि से पूरा ब्राह्मण-वर्ग अर्थात् ९१वें सुत्त से लेकर १०० वे सुत्त तक का भाग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ब्रह्मायु, शैल, आश्वलायन, घोटमुख, चंकि, एसुकारी, धानंजानि, वासेठ, भारद्वाज, सुभ, संगारव, मागन्दिय आदि तत्कालीन ब्राह्मण-दार्शनिकों का पूरा व्यक्तित्व, उनके मत और बुद्ध-धर्म के साथ उनके सम्बन्ध का पूरा चित्र हमें इन सुत्तों में मिल जाता है । इसी प्रकार तत्कालीन परिव्राजकों का चित्र हमें अग्गिवच्छगोत्त सुत्त जैसे सुत्तों में मिल जाता है। दीघनख, सन्दक, सकुलादायि, वेखनस आदि परिव्राजकों के साथ भगवान् के संवाद जो मज्झिम-निकाय में दिये हुए हैं, अत्यन्त महत्वपूर्ण है। तत्कालीन छह प्रसिद्ध आचार्यों (पुराण कस्सप, मक्खलि गोसाल, अजित केस कम्बलि आदि) तथा अन्य सम्प्रदायों के मतों को जानने की दृष्टि से अपण्णक-सुत्त, तेविज्ज-वच्छगोत्त-सत्त, तथा महावच्छगोत्त-सुत्त आदि अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। कन्दरक-सुत्त, उपालि-सुत्त तथा अभयराजकुमार सुत्त में निर्ग्रन्थ ज्ञात्रपुत्र (भगवान् महावीर) के मत के सम्बन्ध में भी कुछ सूचना मिलती है। तत्कालीन साधकों में जो नाना प्रकार की