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प्रस्तावना.
प्रत्येक मनुष्य व्यक्ति अपरिमित शक्तियोंके तेजका पुज है, जैसा कि सूर्य । अत एव राष्ट्र तो मानों अनेक सूर्योका मण्डल है। फिर भी जब कोई व्यक्ति या राष्ट्र असफलता या नैराश्यके भँवरमें पड़ता है तब यह प्रश्न होना सहज है कि इसका कारण क्या है ?। बहुत विचार कर देखनेसे मालूम पडता है कि असफलता व नैराश्यका कारण योगका (स्थिरताका) अभाव है, क्योंकि योग न होनेसे बुद्धि संदेहशील बनी रहती है, और इससे प्रयत्नकी गति अनिश्चित हो जानेके कारण शक्तियां इधर उधर टकराकर आदमीको वरवाद कर देती हैं। इस कारण सब शक्तियोंको एक केन्द्रगामी वनाने तथा साध्यतक पहुंचानेके लिये अनिवार्यरूपसे सीको योगकी जरूरत है। यही कारण है कि प्रस्तुत xव्याख्यानमालामें योगका विषय रक्खा गया है।
इस विषयकी शास्त्रीय मीमांसा करनेका उद्देश यह है कि हमें अपने पूर्वजोंकी तथा अपनी सभ्यताकी प्रकृति ठीक मालूम हो, और तद्वारा आर्यसंस्कृतिके एक अंशका थोडा, पर निश्चित रहस्य विदित हो ।
5 गूजरात पुरातत्त्व मंदिर की ओरसे होनेवाली आर्यविद्याव्याख्यानमालामें यह व्याख्यान पढा गया था।