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२२ सौन्दर्य और भी बढ गया है । स्तोत्र के अनुरूप देवतोचित भावनाओं को काव्य की वर्णन शैली में जिस समन्वय के साथ ढाला गया है वह अपने ढंग का एक अनूठा निदर्शन है। .
१०. मथुरा-माधुरी-इसमें भगवान कृष्ण की प्रधान लीला भूमि मथुरा और व्रज के प्रदेश का वर्णन, तथा उनकी वाल-क्रीडा, रासलीला एवं राधाकृष्ण के संमिलित मधुर रूप की श्रृंगार प्रधान प्रवृत्तियों का सरस चित्रण है। मथुरा के हरे भरे प्रदेशों की सुन्दरता, उद्यानों की स्वाभाविक रमणीयता, पक्षियों के मधुर कलरव आदि से लगाकर भक्तों के भावावेशपूर्ण हरिकीर्तन आदि भगवद्गुणानुवाद के विविध प्रकारों और रूपों का निदर्शन है। द्रुतविलंवित छन्द में यमक का माधुर्य सरस एवं हृदयाकर्षक है। .
इसी के अन्तर्गत श्लेष द्वारा अयोध्या-मथुरा आदि भारत की पुण्यभूमि माने जाने वाली प्रधान सप्तपुरियों को सांस्कृतिक और धार्मिक विशेषताओं का, मथुरा में एकत्र समावेश और समन्वय दिखलाते हुए काव्य-कला का अद्भुत कौशल दिखलाया गया है। संस्कृत साहित्य में अपने ढंग का यह निराला वर्णन है।
११. आत्मोपदेश-इसमे प्राचीन भारतीय संस्कृति के अनुरूप शुद्ध सात्विक जीवन की मान्यता वतलाते हुए अपने पूर्वजों के समान और उनकी भावनाओं का आदर करने की सलाह दी है । साथ ही लौकिक और पारलौकिक कर्तव्यों में मनमानी न करने का अनुरोध किया गया है। अहंभाव के कारण पैदा होने वाली परस्पर विरोधी भावनाओं को त्याग कर एकता के सूत्र में संगठित होने, तथा केवल तर्कों के आधार पर शास्त्र की उपेक्षा और आप-सिद्धान्तों की अवहेलना न करने का आग्रह किया है। इसके सिवा, सामाजिक जीवन में सत्यनिष्ठा और यथासंभव शास्त्रानुमोदित कर्तव्यपथ के अनुसरण, एवं आसचिंतन की आवश्यकता बतलाई गई है।
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