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६. शिवगाथा- यह सरल-सुगम किन्तु भावपूर्ण श्रारात्रिक है। भाषा से इसे 'आरती' कहते हैं । हिन्दी और दूसरी प्रान्तीय भाषाओं में प्रायः सभी देवताओं की आरतियां पाई जाती हैं-किन्तु संस्कृत के क्षेत्र में इस ढंग के आरात्रिक बहुत कम देखने में आते हैं।
७. सरयू-सुधा-यह वसिष्ठतनया भगवती सरयू की भावपूर्ण स्तुति है। आर्ष किंवा पौरुष दोनों रूपों में सरयू का कोई प्रामाणिक स्तोत्र नहीं देखा जाता । इस अभाव पूर्ति की दृष्टि से इस स्तुति का विशेष महत्व समझा जाना चाहिए । इसमे सरयू के प्राकृतिक सन्निवेश, उनकी अगाध जलधारा की विच्छित्ति तथा 'देवतोचित महिमा का वर्णन है। अयोध्या में सरयू तट पर सुप्रसिद्ध नागेश्वरनाथ का ब्योतिर्लिङ्ग होने से इनका असाधारण महत्व माना जाता है। धार्मिक और साहित्यिक दोनों दृष्टियों से इनका वर्णन चमत्कारपूर्ण कहा जासकता है।
___ महाकवि राजशेखर ने बालरामायण में कावेरी आदि दक्षिण की नदियों का जो स्वाभाविक वर्णन किया है-उसी ढंग के भावपूर्ण दृश्यों का चयन यहां भी प्रस्तुत किया गया है।
८. गोमती-महिमा-सरयू की तरह गोमती का भी कोई सुन्दर स्तोत्र देखने में नहीं आता। केवल पुराणों मे ही इनका नाम सुना जाता है। किन्तु धार्मिक दृष्टि से इनका भी वही महत्व माना जाता है, जो अन्य पुण्य नदियों का है। इसमे गोमती की प्राकृतिक स्थिति का चित्राङ्कन, विभिन्न स्थानों पर उनका वैचित्र्यपूर्ण-सन्निवेश, जलप्रवाह की नानारूपता तथा पौराणिक आधार को लेते हुए अन्य विशेषताओं का भी उल्लेख किया गया है । पूर्वोक्त दोनों नदियों के स्तोत्रात्मक वर्णन की शैली एक ही रूप की है।
६. यमुनाकुलकम्-भगवान कृष्ण की लीलाओं को प्रश्रय देने वालीभगवती यमुना का यह साझोपाङ्ग वर्णन है। वहां के प्राकृतिक दृश्यों से लेकर-जलक्रीडा
आदि नदी संवन्धी विशेपताओं और खासकर कृष्ण के बालसहचर गोपों (ग्वाल-मण्डल) के द्वारा संप्रदायागत आमोद प्रमोदों का चित्रण है। प्रसंगवश मथुरा की विच्छित्तियों का भी इसके साथ संमिश्रण होजाने से वर्णन का