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भट्टारक संप्रदाय
की स्थापना हुई होगी।
इस से देवसेन कृत दर्शनसार की स्थिति काफी संशयास्पद हो जाती है। यहां स्मरण दिलाना उचित होगा कि यह संशयास्पदता अन्य साधनों से पहले भी व्यक्त हो चुकी है। काष्टासंघ के स्थापक कुमारसेन का समय दर्शनसार में संवत् ७५३ कहा गया है। किन्तु उनके गुरु विनयसेन के छोटे गुरुबन्धु जिनसेन का समय उनकी 'जयधवला टीका' की प्रशस्ति से शक ७५९ सुनिश्चित है । इसी प्रकार माथुरसंघ की स्थापना दर्शनसार के अनुसार आचार्य रामसेन द्वारा संवत् ९५३ में हुई थी। किन्तु संवत् १०५० में इस संघ के आचार्य अमितगति ने अपने पांच पूर्वाचार्यों का उल्लेख करते हुए भी रामसेन का स्मरण नहीं किया है।
_ऐसी स्थिति में यही मानना उचित होगा कि माथुर आदि चार संघों का एकीकरण हो कर बारहवीं सदी में काष्ठासंघ की स्थापना हुई थी। सम्भवतः यह कार्य उन देवसेन का ही था जिन की चरणपादुकाएं संवत् १५४५ में स्थापित हुई थीं।
इससे उनका 'महाचार्यवर्य' यह विशेषण भी सार्थक सिद्ध होता है।
११ जैन हितैषी, वर्ष १३, पृ. २७१ । १२ कसाय पाहुड भा. १ प्रस्तावना, पृष्ठ ६९ । १३ जैन हितैषी, वर्ष, १३, पृ. २५९ । १४ जैन साहित्य और इतिहास, पृ. २८४ ।
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