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बलात्कार गण-जेरहट शाखा
२११ महासेन ने प्रद्युम्नचरित लिखा । तथा संवत् ११४५ में इस गण के आचार्य विजयकीर्ति के उपदेश से एक मन्दिर बनवाया गया। इन तीनों आचार्यों ने अपनी विस्तृत प्रशस्तियों में लाटवर्गटगण की पूरी प्रशंसा की है किन्तु काष्ठासंघ का कोई उल्लेख नहीं किया है।
बागड संघ के आचार्य सुरसेन के उपदेश से प्रतिष्ठापित की गई एक प्रतिमा पर जो शिलालेख मिलता है, उस में भी काष्ठासंघ का कोई उल्लेख नहीं है । इस प्रतिमा का समय संवत् १०५१ हैं । बागड संघ के दूसरे आचार्य यशःकीर्ति ने जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला नामक ग्रन्थ लिखा है । इस में भी काष्ठासंघ का कोई निर्देश नहीं है।
इन सब अनुल्लेखों पर से प्रतीत होता है कि सम्भवतः बारहवीं सदी तक माथुर, लाडबागड और बागड़ इन तीनों संघों का काष्ठासंघ से कोई सम्बन्ध नहीं था। यहां स्मरण रखना चाहिये की नन्दीतट गच्छ के कोई प्राचीन उल्लेख नहीं मिलते, यद्यपि इसी नाम के ग्राम में काष्ठासंघ की स्थापना कही गई है।
काष्ठासंघ का नाम दिल्ली के निकट जो काष्ठा नामक ग्राम है उसी पर से पड़ा है । इस ग्राम की स्थिति पहले काफी अच्छी थी। बारहवीं सदी में यहाँ टक्क वंश के शासकों की राजधानी थी। किन्तु इस से पहले इस ग्राम के कोई उल्लेख नहीं मिलते । इस से भी प्रतीत होता है कि माथुर इत्यादि संघों का बारहवीं सदी में एकीकरण हो कर ही काष्ठासंघ
६ पृ. १८३ । ७ ए. ई., भा. २, पृ. २३७ । ८ ज. ए. सो., भा. १९, पृ. ११.। ९ अनेकान्त, वर्ष २, पृ. ६८६ ।
१० स्टडीज इन इण्डियन लिटररी हिस्टरी, भाग. १ . २९० । (प्रसिद्ध वैद्यक ग्रन्थ 'मदनपाल निघंटु' की रचना इसी स्थान के टक्क शासक मदनपाल द्वारा की गयी । फीरोज तुगलक की माता यहीं के टक्क शासक की पुत्री थी जिसके दो भाई सण्णपाल और मदनपाल पीछे मुसलमान हो गये थे । गुजरात के मुस्लिम शासक टांक इसी टक्क या टांक सग्णपाल व मदनपाल के वंशज थे।) दे., पी. वी. काणे--हिस्टी ऑफ धर्मशास्त्र, पूना, भा. १।)
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