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भट्टारक संप्रदाय
लिखी [ले. १०९] । इन के शिष्य आदशेटी ने नंदिग्राम में शक १५१४ की पौष शुक्ल १३ को मराठी द्वादशानुप्रेक्षा की एक प्रति लिखी (ले. ११०)। इन के लिखे हुए नेमिनाय पूजा और नन्दीश्वरपूजा ये दो पाठ उपलब्ध हैं (ले. १११-१२)।
इन के पट्टशिष्य कुमुदचन्द्र हुए। आप ने शक १५२२ की वैशाख सुदी १३ को तथा शक १५३५ की फाल्गुन शुक्ल ५ को कोई मूर्तियां स्थापित की (ले. ११३-१४ )।" आप की पार्श्वनाथ पूजा में मलयखेड के भट्टारकपीठ का उल्लेख है (ले. ११५)। आप ने ब्रह्म बीरदास को पंचस्तवनावचूरि की एक प्रति दी थी (ले. ११६ )।
इन के बाद धर्मचन्द्र भट्टारक हुए । इन के शिष्य पार्श्वकीर्ति ने शक १५४९ की फाल्गुन वद्य १० को मराठी ग्रन्थ सुदर्शनचरित पूरा किया (ले. ११७)। पार्श्वकीर्ति का पहला नाम वीरदास था। उन की दूसरी रचना बहुतरी नामक मराठी कविता है (ले. ११८ ) । उन ने संवत् १६८६ में एक कलिकुंड यंत्र स्थापित किया था (ले. ११९) इन ने एक और प्रतिष्ठा शक १५६९ में कराई थी (ले. १२४ )। भ. धर्मचन्द्र ने संवत् १६९२ की वैशाख कृष्ण १२ को एक पद्मावती मूर्ति स्थापित की, संवत् १६९३ की मार्गशीर्ष शुक्ल २ को जयपुर में किन्ही चरणपादुकाओं की स्थापना की, शक १५६१ की फाल्गुन शुक्ल २ को एक पार्श्वनाथमूर्ति स्थापित की, शक १५६७ में एक चौवीसी मूर्ति प्रतिष्ठित की, तथा शक १५७० में श्रवणबेलगोल में एक चौवीसी मूर्ति प्रतिष्ठित की। अन्तिम प्रतिष्ठा के समय पंडिताचार्य चारुकीर्ति भी उपस्थित थे [ले. १२०-१२५] । द्विज बासुदेव ने आप की एक पूजा लिखी है [ ले. १२६] ।
२७ मुनि कान्तिसागरजी ने इन दोनों में गलती से संवत् शब्द लिखा है । संवत्सरों के नामों से ये दोनों शक ही सिद्ध होते हैं ।
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