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बलात्कार गण-कारंजा शाखा कारंजा शाखा की उपलब्ध पट्टावलीमें पहले उल्लेख योग्य आचार्य अमरकीर्ति हैं [ले. ९८]
इन के शिष्य वादीन्द्र विशालकीर्ति हुए । आपने सुलतान सिकन्दर", विजयनगर के महाराज विरूपाक्ष और आरगनगर के दण्डनायक देवप्प की सभाओं में सत्कार पाया था [ ले. ९९]
विशालकीर्ति के शिष्य विद्यानन्द हुए | आपने श्रीरंगपट्टण के वीर पृथ्वीपति, सालुव कृष्णदेव, विजयनगर के सम्राट् श्रीकृष्णराय आदि शासकों से सम्मान पाया था । आप का सम्मान सुलतान अल्लाउद्दीन ने भी किया था" । आप का स्वर्गवास शक १४६३ में हुआ । [ले. १००,१०१ ]
विद्यानंद के शिष्य देवेंद्रकीर्ति हुए । आप के शिष्य वर्धमान ने शक १४६४ में दशभक्त्यादि महाशास्त्र की रचना की। [ले. १०२-३ ]
देवेंद्रकीर्ति के पट्टशिष्य धर्मचन्द्र हुए। आप ने शक १४८७ में एक पद्मावती मूर्ति स्थापित की [ले. १०४-५] ।
इन के अनन्तर धर्मभूषण भट्टारक हुए । आप ने शक १५०३ की फाल्गुन शुक्ल ७ को एक चन्द्रप्रभ मूर्ति स्थापित की [ ले. १०६-७ ] । ... इन के पट्टशिष्य देवेंद्रकीर्ति हुए । उपर्युक्त प्रतिष्ठा में आप ने भी नेमिनाथ की एक मूर्ति स्थापित की [ले. १०८ ] । एरंडवेल में रहते हुए संवत् १६४१ में आपने हर्षमती के लिए आम्बिका रास की एक प्रति
___ २४ इन के पूर्व गुप्तिगुप्त, कुंदकुंद, मयूरपिच्छ, गृध्रपिच्छ, जटासिंहनंदि, लोहाचार्य, उमास्वाति, माघनंदि, मेघनंदि, जिनचंद्र, प्रभाचन्द्र, विद्यानंद, अकलंक, अनंतकीर्ति, माणिक्यनंदि, नेमिचन्द्र और चारुकीर्ति का उल्लेख है।
२५ ये दोनों लोदी वंश के दिल्ली के सुलतान थे। विद्यानंद के विषय में एक अन्य शिलालेख के विवेचन के लिए देखिए Jain Antiquary IV P. Iff.
२६ वर्धमान ने इस ग्रन्थ में कोणूर गण, देशीय गण आदि अन्य परम्पराओं के विषय में भी पर्याप्त लिखा है ।
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