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________________ श्लोक-६-७ ६.मुक्ति-बोध बन्धन दो प्रकार के होते हैं-द्रव्य-बधन और भाव-बधन। बधन आखिर बधन ही है। बधन से मुक्ति अनिवार्य हो, ऐसा हम सब चाहते हैं। पूर्व मे हमने देखा-भक्त भगवान को, आत्मा परमात्मा को अपनी भक्ति के बधन मे बाधने का प्रयास कर रहा है। द्रव्यरूप से आचार्यश्री ४८ बेड़ियो के बधन में बधे हुए थे। जिसमे से ५ बेड़ियो के बधन टूट चुके हैं, शेष वेड़ियों के बधन उनके अगोपाग पर लटक रहे हैं, लेकिन अभी तक आचार्यश्री ने कमी भी परमात्मा को इस बात के लिए उपालभ नही दिया कि-प्रभु। तेरे भक्त को ये बेड़ी के बधन क्यो? अभी तक नहीं और शायद कभी भी नही। सभी बेड़ी के बधन टूट भी जायेगे लेकिन आचार्यश्री कभी भी परमात्मा से अनुनय-विनय नही करेंगे कि मुझे बेड़ी के वधन से मुक्त कर दो। भक्ति की विवशता जब चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाती है, तब बाह्य वधन अपने आप टूटते चले जाते हैं। यह सोचकर हमे आश्चर्य हो सकता है कि सिद्ध भूमि में विराजमान परमात्मा का क्या इतना प्रभाव हो सकता है कि उनके स्मरण से बेड़ी के बधन टूट जायें ? जो सदा स्वात्म मे स्थिर है, स्व-आनद मे लीन है, उसका मिलन क्या, मिलन का बधन क्या? आज तक जीव ने कई सम्बन्ध बाधे, कभी तो किसी सम्बन्ध ने उसे ऐसी प्रसन्नता प्रदान नही की? आत्मा-परमात्मा के बीच मे ऐसा कौन सा नाता है ? कैसा यह सम्बन्ध है ? कौनसा ऐसा प्रबल निमित्त है जो भक्त के लिए प्रेरणादायी बन जाय और मिलन से बधन तथा बधन से मुक्ति दिला दे। __ आचार्यश्री ने परमात्मा से कहा कि इन बेड़ियो से मुझे कोई परेशानी नहीं है। ऐसे चघन तो कई वार आये और आते रहे, जुड़ते रहे, टूटते रहे हैं। मुझे चिन्ता है ससार के वचन की और अब मुझे इससे मुक्ति का मार्ग भी मिल गया है और वह मार्ग है तुम्हारे पवनो में बच जाने का। जब तक भक्ति का वधन भक्त के ऊपर नहीं आयेगा, तब तक वह द्रव्य-वधनों से मुक्त नहीं हो पाता है। भक्ति का मार्ग अत्यन्त Dehcate है लेकिन यह Short Cut भी है और इसी कारण सर्वश्रेष्ठ है, जिसे अपनाकर आचार्यश्री कदम-ब-कदम आगे बढ़ रहे हैं। धीरे-धीरे परमात्मा के वधन मे अधिक वधते हुए वे इस जात को निश्चय स्थिति पर पहुंच रहे हैं जहाँ वचन भी निर्वन्ध की परिणति बन जाते हैं। निबन्द के चयन में यह एक बहुत बड़ी ताकत है, वह कभी भी हमे वधनो से मुक्त कर । मरना है। जदार्य श्री मुक्ति पय पर आगे बढ़ने के लिये, सारे वचनो को तोड़ने के लिये
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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