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मुक्ति - बोध ३५ एक विशिष्ट दया प्रणाली में मयुक्त होते हुए परमात्मा के चरणो ने भक्ति से विवश हो घुमानमा भादा नमस्तक झुका हुआ हा अन्त करण में परमात्मा का आदान और निरिमन्त्रण की मनन माधना क द्वारा अन्नश्चतना जिनकी जागृत हो रही है, सम्यक्त्व fal जान-प्रदान सम-रूप से फैल चुका है, यधार्थ-वोधि की जिनको प्रतीति हो चुकी म आचार्यश्री म एक अभेद स्वर प्रकट होता है
अल्पश्रुत श्रुतवता परिहासधाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते वलान्माम्।
यत्कोकिल किल मधा मधुर विरोति,
तच्चामचूतकलिका - निकरेकहेतुः ॥६॥ अल्पश्रुतम्
- अल्पज्ञानी, (आर) शुतवताम
- ध्रुतधरो के (आप) परिदामधाम
-- परिहास का पात्राप्रसन्नता का धाम
माम
दुर्भा एव
बलाद
मुघरी कुम्न फिल गांव
- आपकी भक्तिही - दलपूर्दक - जबरन - लिफर रही है, -- पियम - मचमुच
गपुर info
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धुरन्धर में