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स्थानाग की सूक्तिया
४४. लोभ मुक्तिमार्ग का वाघक है ।
४५
इन सात वातो से समय की श्रेष्ठता (सुकाल ) प्रकट होती हैअसमय पर न वरसना, समय पर वरसना,
असाधुजनो का महत्व न वढना, साधुजनो का महत्व वढना, माता पिता यादि गुरुजनो के प्रति सद्व्यवहार होना, मन की शुभता, और वचन की शुभता ।
४६.
जो प्रमादवश हुए कपटाचरण के प्रति पश्चात्ताप (आलोचना ) करके मरलहृदय हो जाता है, वह धर्म का आराधक है ।
४८.
इकसठ
४७. अभी तक नही सुने हुए धर्म को सुनने के लिए तत्पर रहना चाहिए ।
सुने हुए धर्म को ग्रहण करने — उस पर आचरण करने को तत्पर रहना चाहिए ।
४६. जो अनाश्रित एवं असहाय हैं, उनको सहयोग तथा माश्रय देने मे सदा तत्पर रहना चाहिए ।
५०. रोगी की सेवा के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए ।
५१. ब्रह्मचारी को कभी भी अधिक मात्रा मे भोजन नही करना चाहिए ।
५२. साधक कमी भी यश, प्रशसा और दैहिक सुखो के पीछे पागल न बने ।