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यजुर्वेद को सूक्तिया
एक सौ एक
१२५. हे देव । मुझे शुभ कर्म मे दृढता प्रदान करो । सभी प्राणी मुझे मित्र
की दृष्टि से देखें । मैं भी सब प्राणियो को मित्र को दृष्टि से देखू। हम सब एक दूसरे को परस्पर मित्र की दृष्टि से देखें।
१२६. हम सौ वर्ष तक अच्छी तरह देखें, सौ वर्ष तक अच्छी तरह स्वतंत्र
होकर जीते रहें, सौ वर्ष तक अच्छी तरह सुनें, सौ वर्ष तक अच्छी तरह बोलें और सौ वर्ष तक सर्वथा अदीन होकर रहें।
१२७ हे महावीर ! तुम चद्र की ज्योत्स्नारूप हो, अग्नि के तेजस्रूप हो
और सूर्य के प्रतापरूप हो। १२८. हे देव । हृदय की स्वस्थता के लिए, मन की स्वच्छता के लिए हम
तुम्हारी उपासना करते हैं । १२६. मैं अपने पति के साथ सस्नेह अविच्छिन्न भाव से रहूँ।
१३० मेरे मन के संकल्प और प्रयत्न पूर्ण हो, मेरी वाणी सत्य व्यवहार
फरने में सक्षम हो, पशुमओ से मेरे गृह की शोभा हो, अन्न से श्रेष्ठ स्वाद मिले, ऐश्वर्य और सुयश सब मेरे आश्रित हो ।