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विसुद्धिमग्ग को सूक्तियां
१. जो मनुष्य प्रज्ञावान् है, वीर्यवान् है और पण्डित है, भिक्षु है, वह शील
पर प्रतिष्ठित होकर सदाचार का पालन करता हुआ, चित्त (समाधि) और प्रज्ञा की भावना करता हुमा इस जटा (तृष्णा) को काट सकता
२. भीतर जटा (तृष्णा) है, बाहर जटा है, चारो ओर से यह सब प्रजा
जटा से जकडी हुई है। ३ सब प्रकार के मलो से रहित अत्यत परिशुद्ध निर्वाण ही विशुद्धि है ।
४. शीलसम्पन्न, बुद्धिमान, चित्त को समाधिस्थ रखने वाला, उत्साही और
सयमी व्यक्ति कामनाओ के प्रवाह को (ओघ) तैर जाता है ।