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सुत्तपिटक: जातक की सूक्तियां
___१. वह विजय अच्छी विजय नही है, जो बाद में पराजय मे बदल जाए ।
वह विजय श्रेष्ठ विजय है, जो कभी पराजय मे नही बदलती।
२. जो व्यक्ति अकृतज्ञ है, निरतर दोष देखता रहता है, उसे यदि सम्पूर्ण
भूमण्डल का साम्राज्य दे दिया जाय तव भी उसे प्रसन्न नही किया जा सकता। सात कदम साथ चलने से मित्र हो जाता है, बारह कदम से सहायक हो जाता है। महीना-पन्द्रह दिन साघ रहने से जाति वन्धु बन जाता है, इसमे
अधिक साथ रहने से तो आत्मसमान (अपने समान) ही हो जाता है । ___४. दुर्बुद्धि या पाकर अनर्थ ही करता है । अर्थात् उसे प्रगसा पच नही
पाती। ५. जो एक के लिए अच्छा है, वह दूसरे के लिए बुरा भी है, अत ससार
मे एकान्त रूप से न कोई अच्छा है और न कोई बुरा ही है ।
६. दुष्ट चित्त वाले व्यक्ति का विकास नही होता, और न उसका देवता
सन्मान करते हैं।