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सत्तानवे
सुत्तनिपात को सूक्तियां ८१. कामभोग का पक दुस्तर है।
८२. आचार्य आदि के द्वारा गल्ती बताने पर बुद्धिमान पुरुप उमका अभिनदन
(स्वागत) करे। ८३. साधक, लोगो मे झगडा कराने की बात न सोचे ।
_____८४ यह संसार अज्ञान से ढका है ।
८५. जो जीते-जी अस्त हो गया है, उसका कोई प्रमाण नही रहता ।
५६ जो शंका और आकाक्षा से मुक्त हो गया है, उसकी दूसरी मुक्ति कैसी ?
____८७ मैं कहता हूँ-जरा और मृत्यु का अन्त ही निर्वाण है ।
८८. सृष्णा का सर्वथा नाश होना ही निर्वाण कहा गया है ।
८६. नदी (आसक्ति) ही ससार का बघन है ।