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अंगुत्तरनिकाय की सूक्तिया
सेतालीम
३३. श्रेष्ठ पुरुषो के प्रति उप रखना सबसे बड़ा पाप है।
३४. हे ब्राह्मण, मिथ्याइष्टि इवर का किनारा है, सम्यग् दृष्टि उघर का
किनारा है। मिय्या सकल्प इधर का किनारा है, सम्यक नंकल्प उघर का किनारा है। मिथ्यावाणी इधर का किनारा है, सम्गक वाणी उघर का किनारा है। मिथ्या कम इधर का किनारा है, सम्यक् कर्म उघर का किनारा है।
३५ भिक्षुओ | मिथ्याज्ञान अधर्म है, सम्यग ज्ञान धर्म है ।
३६. भिलुभो । मनुष्य मन मे रहता है ।