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सूक्तिकरण
१. स्वरूपदृष्टि से सब आत्माए एक ( समान ) हैं।
२. धर्म का मूल विनय = प्राचार है ।
३. रक्त से सना वस्त्र रक्त से धोने से शुद्ध नहीं होता।
४. मैं (आत्मा) अव्यय अविनाशी हूँ, अवस्थित एकरस हूँ।
५. जो विषय भोगो से निरपेक्ष रहते हैं, वे संसार वन को पार कर जाते हैं।
६. सुरूप पुद्गल (सुदर वस्तुए) कुरूपता मे परिणत होते रहते हैं और
कुरूप पुद्गल सुरूपता मे।
७ चक्षुष् इन्द्रिय की आसक्ति का इतना बुरा परिणाम होता है कि मूर्ख
पतगा जलती हुई आग मे गिर कर मरजाता है।