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चूर्णिसाहित्य की सूक्तिया
दो सौ पच्चीस ८५. जहा तप है वहां नियम से सयम है, और जहा संयम है वहाँ नियम से
तप है।
८६ 'कहना कुछ और करना कुछ'-~-यही मृपावाद (असत्य भापण) है ।
८७ आपत्तिकाल मे जैसे अपनी रक्षा की जाती है, उसी प्रकार दूसरो की भी
रक्षा करनी चाहिए।
८८ ज्ञान और दर्शन की विराधना होने पर चारित्र को विराधना निश्चित
८९ भोजन, वस्त्र आदि द्रव्य रूप से, और उपदेश एव सत्प्रेरणा नादि भाव
रूप से, जो भी अपने को तया अन्य को उपकृत किया जाता है, वह सव
वय्यावृत्य है। १० कर्मवंध का मूल प्रमाद है।