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________________ मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र है अभी भारत के हर प्रान्त में जो जो रत्न अपनी अनानता रूप अन्धकार में पड़े हुए हैं उन सभी को श्रापको भूलना नहीं चाहिये। आपसे अपने समाज का तो कहना ही क्या समग्न भारतवासी बहुत कुछ आशा रखते है। आप यह सुदूर विदेश गमन का विचार निश्चय करने से प्रथम अपने देश, धर्म और संघ की चिन्ता को भी चित्त में अवश्य स्थान देंगे। आपके बहुत से कार्य अपूर्ण पड़े हैं आपको अवसर भी कम रहता था। आपके बहुत से विचार अद्यावधि विचार मे ही पड़े है । कार्य में उन्हे परिणित करने का अवकाश भी नहीं मिला और आप जर्मनी जाने को तैयार होते हैं। पूना अहमदाबाद मे जो कुछ मापकी प्रेरणा और परिश्रम से कार्य चल रहे हैं, आपकी अनुपस्थिति मे उनकी दशा भी सोचिएगा। ज्यादा क्या निवेदन करे। . आगे मैंने आपको कई पत्र लिखे। परन्तु दुर्भाग्यवश अद्यावधि उत्तर न मिला। अब तो आशा ही कहाँ ? वर्षों हुए पूने से पट्टावली के सात फरमें पाकर पड़े हुए है। आश्चर्य नहीं कि थोडे ही काल में वे सव दीमक आदि से नष्ट हो जाय परन्तु मेरा कुछ जोर नहीं चलता । मथुरा के लेखो के बंडल यो ही सड़ रहे है, बहुत उपयोगी हैं परन्तु क्या किया जाय? मेरी वर्तमान स्वास्थ्य की अवस्था विशेष शोचनीय हैं । मैं आप लोगो को कोई सेवा देने में असमर्थ हूँ। कृपा दृष्टि बनी रखिएगा, ज्यादा क्या निवेदन करें। शुभमिति सं० १९८४ साल चैत्र कृष्ण सेवक पूरणचन्द नाहर की वंदना अवधारिएगा (३१) P. C. Nahar M. A. B. L. 48, Indian Mirror Street, Vakil High Court Calcutta Phone Cal. 2551 23-7-1929 परम श्रद्धय अशेप गुणालकृत श्रीमान मुनि महोदय की सादर सेवा मे पूरणचन्द नाहर का सविनय वन्दना अवधारिएगा।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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