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बाबू पूरणचन्दजी नाहर के पत्र
३. संक्षिप्त प्राकृत व्याकरण ४. वीर वंशावली अथवा तपागच्छ वृहत् पट्टावली ५. न्यायावतार सूत्र ६. जैन दर्शन
P. C. Nahar M. A. B.L. Vakil High Court Phone Cal. 2551
48, Indian Mirror Street
Calcutta 6th March 1928
परम पूज्यवर,
आचार्य श्रीमान मुनि जिन विजय जी महाराज की पवित्र सेवा मे सविनय वन्दना के पश्चात् निवेदन है कि पंडित सुखलाल जी सा. के पत्र से मालूम हुआ कि आपका विचार शीघ्र ही जर्मनी जाने का है । आपके यह सिद्धान्त पर मेरे लिखने का कुछ नही था, तथापि मेरे भाव आपको प्रकट करना उचित समझ लिखने का साहस किया और कोई विचार से नहीं लिखा जो कुछ अपराध समझे आप अपने महत्व से क्षमा करेंगे।
आप अच्छी तरह सोच विचार कर ही यह विदेश गमन स्थिर किये होगे और इसमे अवश्य कुछ महान उद्देश्य की पूर्ति समझे होगे। पाश्चात्य मे विशेष कर जर्मनी मे गत महायुद्ध के पश्चात् अभी तक लोगों का मस्तिष्क चंचल है । यदि जैन धर्म पर जर्मन भाषा सीखकर उसी भाषा मे भाषण या पुस्तक देने या लिखने का विचार हो तो इस कार्य के लिये वहाँ जाकर शक्ति और समय लगाने पर अधिक फल प्राप्ति की आशा नही है। यदि जैन धर्म जर्मनी का होता तो अवश्य उसमे विशेष लाभ होता। आप स्वयं विद्वान् वुद्धिमान बहुदर्शी और सद्विवेकज्ञ हैं और गम्भीर विचार से भविष्यत् के लाभालाभ को विचार कर जो कार्य होता है, वह सुदीर्घ काल में भी विक्रिया रूप में परिणित नहीं होता। आप भारत इतिहास के लिये भारत में प्रसिद्ध