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________________ ८७ बाबू श्री पूरणचन्दजी नाहर के पत्र आज वर्षों व्यतीत हुए कि आप सहाय और सामर्थ्यहीन भारत माता का मोह जंजाल तोडकर महा समुद्र के पारो के देशो में विचरण करते हुए अपनी प्रबल ज्ञान पिपासा को शान्त कर रहे है । आपके जो समय समय पर वहां से भेजे हुए पत्र यहाँ की पत्रिकाओ में प्रकाशित होते चले आये है, उन सभी को मैं बड़े ही आग्रह और प्रेम के साथ देखता चला आता हूँ। इस अन्तर में यहाँ भी समयानुसार कई परिवर्तन होते चले जाते है। उन सबो का आपको स्वय यहाँ जिस समय पधारेंगे अनुभव होगा। लिखना वाहुल्य है कि देश समाज और व्यक्तिगत परिवर्तन हरक्षण हो रहे है, परन्तु इन दिनों मे कई कारणो से वे आधिक्य से देखने में आते हैं। और आपको भी खबर मिलती रहती होगी। मेरे यहाँ भी गत १९२७ के जनवरी मास मे बड़े भाई सा० राय मुन्नी लाल जी नाहर बहादुर के स्वर्गवास के पश्चात् वहुत कुछ परिवर्तन हो गया है। सामाजिक कलह की भी स्थिति विकट रूप मे थी उसका भी समयानुकूल अन्त हुआ है। इधर मेरे नेत्रो में पीड़ा के कारण अब मै स्वय लिखने पढने से अशक्त हूँ। इस पर भी मेरे जैन लेख संग्रह का तीसरा खंड जिसमें जैसलमेर के लेख प्रकाशित किये हैं उसको भी मैं बड़े परिश्रम और बहुतसी कठिनाइयां झेलते हुए हाल ही मे सम्पूर्ण करने में समर्थ हुआ हूँ उसकी एक कॉपी आपकी सेवा में भेजी जाती है। पुस्तक की भूमिका तो आप आद्योपान्त पढने का अवसर तो अवश्य निकालेंगे। परन्तु उसके प्लेट्स भी अवश्य अवलोकन करें और कृपया अपनी अमूल्य सम्मति भेजें। आगरे मे प्रकाशित श्वेताम्बर जैन पत्र आपके पास पहुंचा होगा। शायद नही आता हो, इसी ख्याल से पत्रिका की सख्या जिसमे ग्रन्थ पर रा. व. प० गोरीशंकर ओझा की सम्मति प्रकाशित हुई है। वह भी सेवा मे भेजते हैं। आपको तथा वहां के जैन विद्वानो को पुस्तक के ३/४ महत्वपूर्ण लेख आशा है कि विशेष पसंद आएगे। प्रो० सुन्निंग आदि विद्वानो को मेरी ओर से भेट स्वरूप भेजना उचित समझे उन लोगों का पूरा नाम व पता लिख भेजें ताकि आपका पत्रोत्तर पाते ही मैं उन्हे प्रतियां रवाना कर सकें। nam
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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