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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ५७ जेतो' «य गोळा वहै, सर पूजै सर वाव । तेती ढूक न सक्कही , मारै दूदौ राव ॥६ ओ मारै ऊ' मोकळे , रहिया दळ नेठाह । हठ हूवौ दुदै सरस, प्रारंभ पेरोसाह ॥१०. हिंदू कोट न छांडही, ना तुरकै मेल्हांण । विग्रह1 थौ बार-बरस", दूदै नै सुरतांण ॥११ . रावळ भुरज पधारियौ, ए ऊपाव करेह । जंत्रमें चरू14 नखाड़ियौ15, घ्रत खंड खीर भरेह ।।१२ ऊपड़िया पतसाह-दळ", वागी भेर निसांण । भाटी दांनो भीमदे, तव गाढम1 प्रामांण ॥१३ सुधन भंडारां निठ्ठियो, लिख मोकळिया खत्त । जो असताई सांभळे, रावळ भखण परत्त ॥१४ ढोवै ढूक न सक्किया, तोखै जोया त्रांण" । थाहर" आपो-यापरी , ग्रह रहिया मेलांण ॥१५ सूंडाळा-घड़ सांमही, फेरी जेसळमेर । पाछो दळ पतसाहरो, घिरियो घातै घेर३° ॥१६ दूदो कहै तिलोकसी, तो सिर छत्र धरेह । परत न भंजां आपणो, गढ छळ घणो करेह ।।१७ आद अनादि उपाविया, लोचनहूंत जवार । जीभां हूं। गोहूं किया, कोरड़ उरह 8 मँझार ॥१८ I जितनी। 2 भूमि, दूरी। 3 बारण । 4 पहुंचता है। 5 उतनी दूरी तक शत्रु लक्ष्य नहीं कर : सकता। 6 यह । . 7 वह, उसके। 8 (१) वहुतसा, (२) भेजता है। 9 समाप्त, खत्म । 10 युद्ध । II युद्ध । 12 बारह वर्ष । 13 और । 14 भोजन-सामग्री रखनेका एक पात्र, चरू। 15 डलवाया। 16 चले, रवाना हुए। 17 बादशाही सेना। 18 बजी। 19 दुंदुभी। ... 20 नगाड़ा, ढोल । 21 बल, शक्ति । 22 समाप्त हो गया। 23 भेजे । 24 प्रतिज्ञा । 25 हमलेके स्थान पर (रणांगण में) पहुँचनेका साहस नहीं कर सके। 26 घोड़ोंने (अश्वारोही . सेनाने) शरणकी तलाश की। 27 रक्षा-स्थान । 28 अपनी-अपनी। 29 हस्ती-सेना । .30 चक्कर लगा कर वापिस लौटा। 31 किसी भी प्रकार । 32 के लिए। 33 से । 34 ज्वार । 35 जीभसे। 36 गेहूँ। 37 (१) एक जंगली धान्य, (२) मोठ । - 38 हृदय, छाती। .
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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