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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात बीजा' विगाड़ किया तिणांरी संख्या ही नहीं। सु पातसाह कनै ठोड़ठोड़री पुकारां गई । तिण ऊपर पातसाह घणो कोप कर फोज विदा की, सु गढ पाय घेरियो, सु दूदै तिलोकसोरै साको करणरी मनमें हुती, जिणसूं दूदै तिलोकसी गढ साझियो नै सासता ढोवा हुवै छै । तिण साखरो रतनूं आसरावरो कह्यो घणो गुरग छ, तिण माहिलादूहा-आवटियो एकोहटा, दे दुरहटा" मेल्हांण । सांभर आपो आपरा, गा सोधे रिण ढांण ||१ एक सु तत्तै संग्रहै, हूंता सेन वहूत । थेटा-लग काढे परी, किय तुरकै ताबूत ॥२ मड्ड हुवा आयो मुगल, नाया ढलपति ढाल । पड़ियो दिल्ली पीटगो, गो रण तोड़े गाल ॥३ दांतूसळ हसती तणा', सांकळ केकाणेह । साखत आई सोवनी, तणीज तुरकांणेह ॥३ ऊसस्सै14 15 सासियो, धिखियौ" दाणव-राह। हिंदू ग्राध न आवही, नहीं मळेछ माह ।।५ परवांणो पतसाहरौ, लिख मूकै मेलांण ।। इण गढ हिंदू वांकड़ौ, कर ग्रहियां केवांण ॥६ जेसळमेर दुरंग गढ़, दूठ ज दूदो राव। मेघाडंवर-छत्र सिर, दोध निसांणे घाव ॥७ .. नीसांणै घाव वाजिया, गाजै गहरै सह। प्राक पतसाह दळ , पडहायौ पर-मद्द।।८ I दूसरे । 2 उनकी । 3 इसलिये दूदे और तिलोकसीने गढ सजाया और निरन्तर हमले हो रहे हैं। 4 वर्णन । 5 क्रोध किया, नाश किया। 6 एक वार । 7 दुवारा 8 अंत. तक । 9 दांत (हाथीकी)। 10 का। II घोड़ोंकी । 12 घोड़ेकी जीनका सामान, जीन। 13 होनेकी । 14 जोशमें आ कर । 15 करके । 16 संधान किया, संभला । 17 युद्ध किया, भिड़ा। 18 मुसलमान 1 19 फरमान । 20 लिख कर भेजता है। 21 वंका। 22 तलवार। 23 दुर्ग। 24 जबरदस्त। 25 नगाड़े पर। 26 डंकेकी चोट। 27 शब्द, आवाज । 28 भयभीत होता है, धूजता है। 29 मर्दन कर दिया। 30 शत्रुका गर्व ।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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