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मुंहता नैणसीरी ख्यात एकदा प्रस्ताव । वुक्रण भाटी ग्राभोरियो, सु जोईयांरो मामो छ । सु बुकण पातसाहरो सानो हुतो' । सु बुकण नै बुझणरो भाई वेज दिल्ली हुता । सु पातसाह कहै-'मुसलमान हुवो।' ताहरां बुकण. नास अर जोईये प्रायो । अर भाई मुसलमान हुवो" । ताहरां बुकण जाईयांमें रह्यो। ताहरां वुकणरै पातसाहरै घररो माल, विध-विधरा विछावणा दुलीचा, कपड़ा वीरमजी दीठा । ताहरां वुकणनूं कह्यो- . 'भाटी ! म्हां भगत कर ।' ताहरां बुकण कह्यो-'बीरमजी ! थांनूं .. भगत करीस' ।' ताहरां वुक्रण भगतरी तयारी कोधी । बीरमजी तेड़िया । ताहरां बीरमजी रजपूतांनूं कह्यो-'यांप वुकणनूं मारिस्यां ।' भगतरै मिस जायनै मारिस्यां । ताहरां रजपूतां कह्यो-'मला राज' !' पछै बुकणरै डेरै प्राय वुकणनूं मारियो। डेरो लूटि माल लियो । घोड़ा लिया । आपरै डेरै ले आया। .... . .
हिवै जोईयारे मन में सोच पड़ियो । 'जोरावर यादमी घरमें. प्राय पैठो । काई नां मारै15 ?' युं करतां दिन ४-५ हुवा । ताहरां फरवास वढायो, ढोलरै वास्तै । ताहरां पुकार गई। 'राज! फरवास । वीरमजीरै लोकै वाढियो ।' तोई जोईयां गई कीवी । कह्यो'वीरमजीतूं प्रांपां तोड़णी नहीं।' ताहरां दलैन वीरमजी तेडायो । 'चूक कर मारूं।' इसी विचारी । ताहरां दलो प्रायो ! खड़सल एकी
I यह बुक्करण वादशाहका साला होता था। 2 बुक्करण और वुक्तणका भाई दोनों दिल्ली में थे। 3 तब बुक्करण भाग कर जोईयोंके यहां पा गया। 4 और उसका भाई मुसलमान हो गया। 5 तब बुक्कणके यहां विविध प्रकारके बिछौने, गलीचे और .. कपड़े आदि बादशाहके घरका माल वीमरजीने देखा। 6 तव बुक्करणको कहा कि-'भाटी !. . हमारी प्राव-भगत करो।' . 7 तव बुक्करणने कहा-'वीरमजी ! मैं आपको गोठ (प्रीति-... भोज ) दूंगा ! · 8 तर बुक्करणने गोठ देने की तैयारी की। 9. वीरमजीको बुलवाया। ... 10 अपन बुक्करणको मार देंगे। II गोठके मिल जा कर मारेंगे। 12 तव राजपूतोंने कहा-'अच्छी बात है राजन् ।' : 13 अव जोईयोंकों भी चिन्ता हुई। 14/15 जोरावर .. आदमी घरमें नाकर घुस गया। किसीको मार न दे ? . 16 तव ढोल बनवानेके लिये एक भाऊका पेड़ कटवा दिया। 17 राज ! झाऊको वीरमजीके ग्रादमियोंने काट लिया। 18 तोभी ...: जोईयोंने कोई ध्यान नहीं दिया। : 19. बीरमजीसे अपने को तोड़ना नहीं है । 20 तब ... वीरमजीने दलेको बुलवाया। 21 मनमें ऐसा विचार किया कि दलेको धोखेसे मार दूं.....