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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात वीरम ल्यावो ।' ताहरां खांनसू ऊदो मिलण आयो। ताहरां खांन ऊदैनूं पकड़ लियो। कहियो-'जी ! वीरम ऊदैरै पेट माहै छ।' ताहरां ऊदैरी मानूं बोलाई। कह्यो-'वीरम वावड़ो, नहीं तर ऊदैरी खाल कढाऊं छू, अर भुस भराऊं छू ।' ताहरां ऊदैरी मा कनै ऊभी राखी छ । अर कह्यो-'जी, खाल काढो ।' ताहरां ऊदैरी मां बोली'वीरम तो ऊदैरी खाल माहै न छै; 'वीरम ऊदैरै पेट माहै छ, पेट फाड़ो।' ताहरां खांन बोलियो-'देखिया रे ! रजपूतांणियांका बळ । बेटे ऊपर कान नहीं हिलाती है ।' ताहरां खांन महरवान हुयनै ऊदैनूं छोड़ियो। वीरमरो गुनो बगसियो'। खांन उपरांठो फिर नागोर गयो । ऊदो जाय जांगळू बैठो।। हिवै वीरमजी जाय जाईये रह्यो । जोईयां घणो आदर दियो। घणा हीड़ा किया। कह्यो-'वीरमजी विखैमें आया छै, बेखरच छै11 ।' ताहरां दोण मांविसवो कर दियो । वडी भायप कीधी । अठै वीरमजीरा कामेती दांण ऊपर बैसै14 रातिरो हैंसो वैहचाइ दै15। कदै सरब गोलक मेल आवै। कहै-थे सवारै लेज्यो" । जे नाहर बकरी मारै तो एकै बकरीरी इग्यारह बकरी लै । कहै नाहर तो जोईयांरो छै' । - I तब खानने ऊदाको कहलवाया कि 'माल लायो और वीरमको भी लायो।' 2 तब ऊदाकी माको बुलवाया और उससे कहा कि 'वीरमको बतलाओ, और नहीं बतलाती हो तो तुम्हारे सामने ऊदाकी खाल खिंचवाता हूँ और उसमें भूसा भरवाता हूँ।' 3 तव अदाकी मांको पासमें ला कर खड़ी कर दी है। 4 और कहा कि 'खाल खींच लो।' 5 तव खान बोला---'अरे देखा तुम लोगोंने ! राजपूतानीके साहसको।' 6 अपने वेटेके लिये कोई विरोध नहीं कर रही है। 7 वीरमका अपराध भी माफ कर दिया। 8 खान लौट कर नागौर चला गया। 9 अब वीरमजी जोईयोंके यहां जा कर रहे। 10 बहुत सेवा की। II वीरमजी श्रापत्तिके मारे यहां आये हैं, पासमें खर्ची (रुपया-पैसा) नहीं है। 12 मालगुजारीमें उनका भाग डाल दिया। 13 बड़े ही भाईचारेका व्यवहार किया। 14 अव यहां मालगुजारी की वसूलीके लिये वीरमजीने अपने कर्मचारियोंको वैठा दिया है। 15 रातको मालगुजारीमें से उनका हिस्सा वाट कर उन्हें दे देते हैं। 16 कभी सभी आमदनी अपने गोलकमें रख देते हैं और उन्हें कह देते हैं कि कलकी आमदनी सब तुम ले लेना। 17 यदि कोई नाहर बकरीको मार देता है तो एक बकरीकी जगह ग्यारह बकरी वसूल करते हैं और कहते हैं कि नाहर जोईयोंका है। .. .. the . .
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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