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________________ २०४ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात थाहरी वहू दिखावो' ।" तरै नागही वहूनूं सिंणगार ल्याई । वहूरा ... पग धरती लागै नहीं । वहू देवरूप हुई । राव वहून हाथ घातियो । तरै देवी रावनूं कोप कियो । रावनूं सराप दियो। कह्यो-"थांहरों गढ जाजो। थारी मत भ्रष्ट हुई, गढ तुरकानूं देईस । तूं तुरकारी (वहू) नूं सेवीस, अखत पढीस, धूड खातो फिरीस' ।" यो श्राप हुवो। रावरो मुंहडो विगड़ियो। राव घरैः गयो। पदमणी जाय केदार .... गळो । देवी नागही पातसाह महमंद वेगड़ा कनै गई। जायने कह्यो-"म्हे थांनूं गिरनार दियो ।” तरै पातसाह कह्यौ-"तिका वात क्युं जांणीजै ?" तर देवी नागही कह्यो-"थे सवाररा सूता ऊठो, .. तरै थाहरी पाघ माहतूं चावळ रंगिया नीसरै तो साच कर जांणीजो।" तरै सवारै चावळ नोसरिया । तरै पातसाह गिरनार ऊपर चढियो, गढ घेरियो। मंडळीक गैहलो हुवो" । गढरी कूची राव पातसाहनूं प्रांण दो' । पाप गढसूं उतरियो। पातसाहतूं मिळियो । पछै मंडळीकनूं पातसाह तुरक कियो। गाय खवाड़ी। तुरका भेळो बैठो, खराव हुवो। रजपूत १००० मंडळीकरा वाज मुंबा । गढ गिरनार पातसाह लियो। पठाणां गिरनार थांण राखिया, नै पातसाह परो. गयो । तठा पछै पातसाह महमंद वेगड़ो वेगो ही मुंबो' । तठा पछै .... I वह नागहीको कहने लगा कि मुझे तुम्हारी पुत्रवधूको दिखलायो। 2 तब नागही . अपनी पुत्रववृको शृंगार करके ले आई। 3 पुत्रवधूके पांव भूमिको स्पर्श नहीं करते, वह देवी-रूप हो गई। 4 श्राप । 5 उसने कहा-'तेरी मति भ्रष्ट हो गई अत: तेरा गढ़ तेरे . ".. अधिकारने चला जाये, उसे मैं तुर्कोको दूंगी । तू तुकोंकी (स्त्रीकी) सेवा करेगा, म्लेच्छ .. वागी पढ़ेगा और धूल चाटता फिरेगा।' 6 पद्मिनी कदारनाथ जा कर हिमालय में गल गई। 7 नागही देवी वादशाह महमूंद वेगड़ाके पास गई और जा कर कहा कि हमने तुमको गिर- : नार दिया। 8 इसका पता कैसे लगे? 9 तब नागही देवीने कहा कि प्रात: जब तुम सोते हुए उठो उस समय तुम्हारी पगड़ीमें रंगे हुए चावल निकलें तो इस बातको सच जानना। 10 प्रातःकाल से चावल निकल गये. तब बादशाह गिरनार पर चढ़ कर के गया और गढ़को .. घेर लिया। मंडलीक पागल हो गया ! II गढ़की चावी रावने वादशाहको ला दी। 32 स्वयं गढ़से नीचे उतरा और बादशाहसे मिला । बादशाहने मंडलीकको मुसलमान बनाया और गाय खिला दी। मुसलमानों के शामिल खाना खाया और भ्रष्ट हुआ। 13 एक हजार गजपूत मंडलीयाके लड़ कर मर गये। 14 गिरनारका गढ़ बादशाहने अपने अधिकारमें किये। पटानों को गिरनारके याने पर रखा और फिर बादशाह लौट गया। 15 इस घटनाके... बाद पाहतो बन्दी ही मर गया । .
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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