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________________ मुहता नैणसीरी ख्यात ह ३ 12 छै । तिण ऊपर' सैद ग्रायो । तद रावत गोवंद कांम आयो । तठा पर्छ रांणारा हुकमसूं सीसोदिये जोध सकतावत मोरवण, करायो, कुंडळरी सादड़ी जीहरणरा गांव कितराएक मुकात लिंया' । जोध, 'वाघ बेऊ' भाई वसिया । जोध एक ठोड़, वाघ एक ठोड़ धरती वीच घाती' । उणरी धरती वसण दे नहीं । आपरी वास " । मीमचर गांव चौथ' मांगै छै । नै रावत वीको मठाथी रांण उदैसिंघ ठेल काढियो छ,' तो पिण' इणांरो" सादड़ी मांहे दखल छै । वीके जाय देवळिये गुढो कियो" । तद उ वडेरी मेरांरै ग्रासारण दादी छै" । उणरो कारण घणो छै । वे कयो म्हे यांनूं रहण नहीं दाँ ग्रठै" । तरै इण घणा संस - सपत किया । पछे होळीरै दिन चूक करने मेर सोह मारिया " । वीके देवळियो लियो । उण प्रसारणांरा बेटा - पोतरानूं गांव १ अजेस छै” । तिणरो वडो इतबार छै'" । गांव ७०० देवळियानूं लागे नै देवळियारै पुठीवास " गांव १०० मांहे मेर रहे छै । केई रैंत” छै, केई मेवासी" छै । वडी धरती छै" । गोहूं, उड़द, चावळ, वाड़ घणो हुवै । प्रांबा महुड़ा घणा " | गांव ३०० भाखर मांहे, गांव ४०० भाखरांरै बारै छै । -15 17 20 23 .24 इतरी धरती देवळियेरा नवी खाटी - 26 गांव ८४, सुहागपुरो सोनगरांरो उतन" । रावतसिंघ प्राठोड़ लीवी । वे सोनगरा चाकर थका अजेस धरती मांहे रहे छै" । रामचंद " 1 28 : 1 जिस पर चढाई कर । 2 इजारे पर लिये । 3 दोनों | 4 जोधने एक स्थान पर और वाघेने एक दूसरे स्थान पर भूमि पर अधिकार किया । 5 उसकी ( सैयद की ) भूमि श्रावाद नहीं होने देते । 6 अपनी भूमिको वसाते हैं 7 प्रायका चतुर्थांश 8 और रावत वीकाको रारंगा उदयसिंहने यहांसे निकाल दिया है। 9 तोभी । 10 इनका । 11 रक्षास्थान बनाया । 12 वहां ( देवळिये ) में उस समय मेरोंकी एक प्रसारण पितामही रहती थी । 13 उसकी बहुत प्रतिष्ठा है । 14 उसने कहा हम तुमको यहां नहीं रहने देंगे । 15 तव इसने बहुत प्रकार सोगंध खा कर वचन दिया । 16 किन्तु होलीके दिन छल करके उसने सब मेरोंको मार दिया । 17 अभीतक एक गांव उन प्रसारणोंके वेटे पोतोंके अधिकारमें है । 18 उनका बड़ा सम्मान और भरोसा है । 19 पीछे की ओर 20 / 21 कई नियमपूर्वक प्रजाके रूपमें और कई लुटेरोंके रूपमें 22 भूमि अच्छी उपजाऊ है । 23 गन्ना | 24 ग्राम और महुआ अधिक । 25 इतना भूप्रदेश देवलिया वालोंने और नया प्राप्त किया । 26 जन्मभूमि | 27 वे सोनगरे नौकर की स्थिति में अभी तक उस धरती में रहते हैं । 28 वह न्यायी और धर्मात्मा होने के कारण भगवान् रामके आचरणोंका अनुवर्ती कहा जाता था ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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