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________________ . मुंहता नैणसीरी ख्यात 2 3 5 6 [ ३३६ करी" - "म्हारे बापरो वैर वळं, " । गैचंद हाथ श्रावै तो हूं कँवळपूजा करने श्री सचियायजीनं माथो चढ़ाऊं ।" पर्छ सन्चियायजी आय सुपने में हुकम दियो, वांस हाथ दिया ने कह्यो - "काळ वागे, काळी टोपी, बैहलर काळी खोळी, काळा बळद जोतरियां, जिंदारं रूप कियां सांम्हां मिळसी । श्रो गैचंद छे, तू मत चूकै ; कूट मारे ।” पर्छ वैरसी मूंधियाड़ ऊपर फौज लेने दोडियो । सांम्हां उण रूप ग्रायो, सुगैचंद मारियो । पछे प्रोसियां जात प्रायो' | आप एकंत देहुरो जड़ने कँवळपूजा करणी मांडी" । तरै देवीजी हाथ झालियो," कह्यो - हे थांरी सेवा - पूजासौं राजी हुवा ; तोनै माथो बगसियो; तूं सोनारी माथो कर चाढ़ ।" प्रापरे हाथो संख वैरसीनूं दियो, को"श्रो संख वजायनें सांखलो कहाय" । " 11 पछै वैरसी प्राय रूणवाय वसियो । मूंधियाड़रो कोट पड़िहारांरो उपाड़नै सांखलै रूंणकोट करायो ' 13 पीढ़ियांरी विगत - १ सांखलो वैरसी वाघरो । २ रांणो राजपोळ । ३ छोहिल राजपाळरो । २३ महिपाळ राजपाळरो । तिणरै वांसला 14 जांग ळवा | ३ तेजपाळ राजपाळरो । तिरै बेटा 1 ४ भोहो । जिण भोहार बेटा ५ उदग वडो रजपूत हुवो । राजा प्रथ्वीराज चवां णरा चाकर सांवतांमें " हुवो | मेड़तो प हुतो । ५ देवराज भोहारो । तब वैरसने अपने मन में सचियाय माताजीका ध्यान करके अपनी इच्छा प्रकट की । 2 मेरे बापका पैर निकले । 3 पीछे । 4 बहलके । 5 काले बैल जुते हुए । 6 जिनका । 7 वादमें प्रोसियांकी यात्रा करनेको आया । 8 मंदिरको बंद करके एकान्त में कमल पूजा करनी शुरू की। 9 तब | 10 पकड़ा। 11 से 1. 12 यह शंख बजा और सांखला प्रसिद्ध हो । 13 पड़िहारोंके अधीनस्थ मूंबियाड़ गांवका कोट गिरवा कर सांसलोंने उससे रुकोट बनवाया । 14 पिछले वंशज | 15 सामंतों में । वागमें
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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