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मुंहता नैणसीरी ख्यात
वात अणहलवाड़ा पाटणरी
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वनराज वडो रजपूत हुआ । तिको एक नवो सहर वसावणारी मन धरै छै । इण पाटणरी ठोड़ एक कोई गवाळियो प्रणहल नांमै स्यांणो आदमी हुतो' । तिण एक तमासो दीठो हुतो । एकण गाडर वांसै नाहर दोड़ियो । गाडर ग्रागे नाठी' । इण पाटणरी ठोड़ गाडर श्रई तर नाहरसूं सांमी मांड ऊभी रही । तिका वात प्रणहल दीठी हुती । तिको वनराज धरती देखतो फिरै छै; तरै ग्रणहल ग्वाळियो आय वनराज चावड़ानूं मिळियो | कह्यो - "हूं थांनूं सहर वसावणनूं इसड़ी ठोड़ एक बताऊं, जिको वडो अजीत खेड़ो हुवै; पिण थे बोल दो' । क्यूं सहर मांहै म्हारो नांव ग्रांणो' ।" तरै वनराज बोल-कौल दिया" तरै अणहल गाडरनै नाहर वाळी वात कही । तरं हमैं पाटण वसै छै, या ठोड़ चावड़ा वनराजनूं दिखाई । वनराज ठोड़ देख वोहत राजी हुवो ने 'अणहलवाड़ो पाटण' सेहररो नांव दियो । संमत १०१रा वैसाख सुद ३ रोहिणी नक्षत्र मध्यान्ह विजय मोहरत पाटणरा कोटरी रांग भरी । ग्रागै कोई गुजराती लोक भील मलेछ रैहता, सु सारा दूर किया। आबूरी तलहटीरो लोग नवो प्रण' वसायो | वडो सहर वनराज चावोड़े बसायो । अरणहलवाड़ा पाटणरी जन्मपत्रिका लिख्यते " I
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I इस पाटनकी जगह अरणहल नामका एक ग्वाला सयाना आदमी रहता था । 2 उसने एक तमाशा ( श्रद्भुत वात) देखा था । 3 एक भेड़के पीछे नाहर दौड़ा । 4 भेड़ आगे भगी । 5 तव नाहर से सामना करनेको खड़ी रही । 6 ऐसी ।
अजीत होगा । 8 परंतु तुम वचन दो । 9 शहर के 10 तव वनराजने वचन दिया । II इस समय नाम रखा । 13 सम्वत् १०१के वैशाख शुक्ल मुहूर्तमें पाटन के कोटका खांत मुहूर्त किया । जन्मपत्रिका ( इस प्रकार ) लिखी जाती है ।
7 वह गांव नामकरणमें कुछ मेरा नाम भी रखो । 12 और 'अणहिलवाड़ा पाटन शहरका ३ रोहिणी नक्षत्र, मध्यान्ह समय विजय 14 लाकर । IS हिलवाड़ा पाटनकी