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मुंहता नैणसीरी ख्यात
[ २३१ कवित्त अलावदी आरंभ' कीध' सोनागर ऊपर । हुवो समर तलहटी जुड़े चहुवांण मछर भर ।। सकतीपुरचो सांम प्रांण सुरतांण संकायो । गांजै घड़" गज रूप चीत" पालम चमकायो । रांजियो राव कांनड़ रिणह कोतक खि रथ थंभियो।
वरमाळ कंठ अपछर वरै साल्ह विवाणै माल्हियो' ॥ १ ॥ १३ वीकमसी। १४ पातो । १५ राव वरजांग । १३ हापो, तिणरै वांसला सूराचंद धणी11 । १४ घड़सी। १५ सहसमल । १६ भोजदे। १७ उधरण । १८ वीसो। १६ डूंगर। २० रांणो मान २१ रांणो भारवर । २१ रांणो सूजो। २२ रांणो सादूल सूजारो। २२ दयाळदास सूजारो। २३ अखो दयाळदासरो।
राव वरजांग पातारो । पातो, वीकमसी, साल्हो सोभ्रम, पदमसी विजेंसी, प्रांक १५ राव वरजांग ने मिलकमीर वेढ़ हुई सं० १४७८12
I हमला। 2 किया। 3 जालोरका स्वर्णगिरि नामका किला। 4 क्रोध, गर्व । 5 नाश कर दिया। 6 सेना। 7 चित्त । 8 सूर्य । 9 विमानमें। 10 प्रस्थान किया। II हापा, जिसके पीछे वाले (वंशज) सूराचंदके स्वामी हुए। 12 राव वरजांग और मीरमलिकके सं० १४७८ में लड़ाई हुई।