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________________ २२४ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात कह्यो- “दहिया भेळा हूँ ज्यूं जांणीजै छ । गढ़ लिरासी ।" सु वांरो भाईबंध दहियो रावळजीरी पाखती ऊभो हुतो", तिण बात या सुणो । उणनूं खटक लागी । उण तुरकानूं भेद दीनो । गढ़ सुरंग पिण लागी । कोट उडियो । गढ़ भिळियो । कांधळ खांडैरे मुंहई घणो पराक्रम कियो । रावळ कानड़देजी अलोप हुवा । कुंवगंगुर वीरमदेजो अतरा' साथसू काम प्रायो। पछै तुरका वीरमदेरो माथी वाढ़ियो'", न दिली ले गया। पछै वा पातसाहजीरी बेटी वीरमदेरो माथो थाळी मांहै घातनै परणीजण लागी, सु माथो संबो हुतो सु फिरनै अपूठो हुवो" । तरै साहजादी पूरवजनमरी वात कही ; तरै माथो अपूठो हुतो सु फिरनै संवळो हुबो । तर साहजादी फेरा खायनै वांस कहै छै सती हुई । सं० १३६८ वैसाख सुदि ५ वुधवाररो गढ़ जाळोर तूटो । गढ़ तूटतां साथ जिसो हुवो तिणरी हकीकत अतरो साथ कानड़देजीरो सवौं हुवो'" । कानड़देजी आप अलोप हुवा १ कांधळ देवड़ो। १ कांनो अोलेचो। १ लिखमण सोमत । १ जैतो देवड़ो। १ जैतो वाघेलो। १ लूणकरण । १ मांन लणवायो। १ उरजन विहळ। १ चांदो विहळ । I ऐसा जाना जाता है कि दहिये संगठित हो रहे हैं। 2 गढ लें। 3 पासमें खड़ा था। 4 उसको चुभी। 5 गढमें सुरंग लगवाई गई। 6 गढ़ पर शत्रुओंका अधिकार हो गया। 7 कांधलने तलवारके सामने बहुत पराक्रम दिखाया। 8 रावल कान्हड़देजी अलोप हो गये। 9 इतने । 10 काटा । II रख कर। 12 माथा सन्मुख था सो उलटा हो गया। 13 सीधा हो गया। 14 वीर गतिको प्राप्त हुआ ।'
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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