SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूंहता नणसीरी ख्यात दे आपरै पाटवी कीयो । माहपर्नु अगली रावळाई दे नै डूंगरपुर वांसवाळो दियो। तिणरी ओलाद डूंगरपुर बांसवाळे छै । नै राणा राहपरा चीतोड़रा धणी छै । रतनसी अजैसीरो, भड़ लखमसीरो भाई। पदमणी मामले लखमसी नै रतनसी अलावदीसू लड़ काम आया । एक बार पात- .. साह चढ खड़ीया हुता सु पछै उदेपुररा* डैरांसू इणां पाछो तेड़ायो । बारै दिन एक एक बेटो लखमणसीरो गढ़सू उतर लड़ीयो । तेरमैं दिन जुहर कर रांणो लखमणसी रतनसी काम आया । भड़ लखमसी, रतनसी, करन तीनै भाई गढ – रोहै' काम आया । भड़ लखमसीरो बेटो अनंतसी जाळोर परणीयो० हुतो, सु उठै कानड़दे साथ काम आयो, सु जाळोरमें डूंगरी वाजै छै । अरसी साथै काम आयो । तिणरो बेटो रांणो हमीर चीतोड़ वरस ६४ मास ७ दिन १ राज कीयो । १ अजैसी गढ - रोहै काढीयो । तिणरा कुंभावत १, ककड़ १, मांकड़ काम आया। १ प्रोझड़ १ थड़रा भाखरोत । तठा आगै'3 इतरी14 पीढी चीतोड़ रांणा हुवा - 1 माहपको परंपरागत 'रावल'की पदवी देकर डूंगरपुर और बाँसवाड़ेका देश दिया। 2 राना राहपके वंशज चित्तोड़के स्वामी हैं । 3 परम सुन्दरी महाराना रत्नसिंहकी रानी पद्मिनी, जिसको प्राप्त कर अपनी वेगम बना लेनेको उत्कट अभिलाषासे अलाउद्दीन खिलजीने चित्तोड़ पर चढ़ाई की। भयंकर युद्ध हुआ। लखमसी और रतनसी दोनों इस मामले में काम आये । 4 रवाना हुए थे । 5 बुलाया । 6 बारह, 1 7 तेरहवें । 8 युद्ध में मारे जानेके पश्चात् शत्रुओं द्वारा उनकी स्त्रियोंका अपमान न हो अतः जौहर करनेकी (धधकती हुई अग्निमें कूद कर जल जानेको) आज्ञा दे कर राना लखमणसी और रतनसी काम आ गये। 9 शत्रुको गढ़ में प्रवेश न करने देनेके लिये गढ़के द्वार पर की जाने वाली भीषण मुठभेड़ । 10 विवाह किया था। 11 जालोरमें जिस पहाड़ी पर अनंतसी काम आया वह पहाड़ी 'अनंतसीरी डुंगरी' कहलाती है । 12 युद्ध में घायल हो जाने पर अजैसीको वंश - रक्षाके लिये गढ-रोहसे वचा कर बाहर निकाल लिया । 13 जिसके आगे । 14 इतनी। __ * उदैपुर' पाठ अशुद्ध है । " . . . . . . . 'सु पछ उणनै पुररा डेरांसू इणां पाछो तेडायो।" पाठ अधिक संगत है। लिपिकारको इतिहासका ज्ञान नहीं होनेसे प्रतिमें स्पष्ट 'पुर' शब्दके पूर्व अस्पष्ट अक्षरोंको 'उदै' समझ कर 'उदैपुर' कर दिया है । उदैपुर तो उस समय था ही नहीं ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy