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________________ १८४ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात किसी मेलां।" पछै भाई एक वोलियो-"जु वीजू तो काहे कां', मुंवां विगर अावू नहीं आवै । एकै अोळ साटै आवै तो ढील मतां करों।" तरै लूंण कह्यो-“हू जाइस' ।" तरै चारगानूं कह्यो-"म्हे भूखिया नै मांहरै वेटी जरूर परणावणी' । वे ठाकुर अाज म्हां निवळा देखै छै तो म्हे अोळ पिण देस्यां ।" यूं थाप करने लूंणानूं अोळ मेलियो । उठे पंवार १ वडो ठाकुर नै ओ लूंगो पावू रयो । नै पंवार २५ वींद छेड़ावडै साथसूं पाया । अठ सांमेळो करायनै प्रांग जांनीवासे उतारिया । घणी महमांनी करी । भांग, अमल, दारू गाढ़ा सहोरा किया । साहारी'' वेळा हुई तरै इणां रजपूतां २५ मोटियारां छोकरांन" बैरांरा वागा पहराया। वींदणी कर वैसांगिया । पटलीरी पाखती कटारियां छांनी सीक राखी'" । कह्यो-"म्हे फेरा लेणरी कहां तरै हुसियार हुईजो । कटारियां मार पाड़जो।" यूं केहनै जांनीवासै जाय कह्यो-“साहेरी वेळा हुई छै, वींद हालो'" ।" जांनी दारूथी विकळ हुवा था, थोडासा आदमियांसूं परणीजण आया । डोढ़ीरै मुंहडै ऊभा रहनै कह्यो'-"वीजा ऊभा रहो" । माहे मांगस छ । छां भूखा, पिण मांहरै ठाकुराई छै । यूं कहि सारा वारै राखिया । वींदांनूं मांहे लिया। चंवरियां मांहे वैसांणिया । हथळे वा वांभण जोड़िया" ! मोटियारै हाथ पीडा झालिया" । तरै वांभण __I दूसरी बात तो क्या कहूँ। 2 एक ही मनुष्य-बन्धकके बदलेमें बाबू आता है तो देरी नहीं करो। 3 मैं जाऊंगा। 4 हम गरीव हैं लेकिन क्या करें हमको लड़कियोंका विवाह करना है। 5 वे ठाकुर आज हमको निर्वल समझते हैं तो हम 'पोळ' भी देंगे । 6 इस प्रकार निश्चय करके । 7 वहां एक बड़ा पंवार ठाकुर जिसके पास यह लूणा 'पोळ' रूपमें श्रादू जा कर रहा । 8 और पंवारोंके २५ मनुप्य दुल्होंके रूपमें वरातियोंके साथ आये। 9 यहां साम्हेला (अगवानी) करा कर जनिवासेमें ला कर ठहरा दिये । 10 भंग, अफीम, शराव अादिले वहुत खातिरदारी की। II पाणिग्रहण। 12/13 जवान छोकरोंको स्त्रियोंके वस्त्र पहिनाये। 14 दुलहिनें बना करके विठा दिया। 15 अोढ़नेकी पटली घाघरे में खोसनेकी जगहमें गुप्त रूपसे रख दी। 16 दूल्हे चलें। 17 ड्योढ़ीके द्वार पर खड़े रह कर कहा। 18 दूसरे यहां ही खड़े रहें। 19 अन्दर जनाना है। 20 हम असमर्थ हैं किन्तु हमारे ठकुराई तो है। 21 दुल्होंको अंदर लिया। 22 ब्राह्मणोंने पाणिग्रहण करवाया। 23 युवकोंने मेंहदी-पिंड वाले हाथोंको पकड़ा। . .
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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