SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात आधंतर, ऊपाड़ियै लूट जण - जण पूगो जुवो - जुवो । खींवर हा कलियो खीमावत, होकर जाड़ विहाड़ हुवो ॥ ३ ॥ गीत चीवा खीमां भारमलोतरो' सिया दलारो को खीमो राव कलारो चाकर । सुरतांग कलै वेढ़ हुई, कांम प्रायो " | गीत' विडरी ग्रास, विजो थियो वांस, वाजै हाक थई विकराळ | चालां चालरणहार न चूको, खत्रवट खग-वाहो खेमाळ ॥ १ ॥ [ १७१ एकण खेम ऊपर ग्रायो, सोह - ग्रावगो डूंगरां साथ । मिटै न घणै नरे मंडाणो, भारमलोत सरस भाराथ ॥ २ ॥ 1 भारमल के पुत्र खीमा चीवाका गीत । 2 ग्रासिया शाखा के चारण दलाका कहा हुआ । 3 खीमा राव कलाका चाकर । सुरतान और कलाके युद्ध हुना तव खीमा काम श्राया । 4 गीतका भावार्थ विकराल रूपसे रणवाद्यों का शोर हो रहा है । क्षात्रधर्म पर ग्रारूढ़ खड्ग चलाने वाला खीमा युद्ध में चालें चलने वालों से किसीसे नहीं चूका । पीछे पड़े हुए वीरोंकी विजयकी आशाएं घवराहटमें परिणत हो गई ॥ १ ॥ तव पहाड़ों में से निकल कर समस्त सेना खीमाके ऊपर गई । भारमलके पुत्र वीर खीमाने उस समय जो युद्ध किया वह कई मनुष्यों के हृदयों में अंकित है, मिट नहीं रहा है ॥ २ ॥
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy