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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात गीत चीवा जैतारो'. आढ़ा दुरसारो कह्यो ' श्रीमोटै राजा, सूरै देवड़ारा बेटा - सांवतसी, तोगो, पतो ---- मारिया, तद कांम आयो । १७० ] गीत' R कहर । सोमाहर • तिलक सींचतो - साबळ, करतो - खग दांती रिण रोहियो घणो चीवोळ एकलवा वर ।। १ ।। राठोड़े, भाला, पसर । आहेड़ी, एकल जैत सलख सकै न पाड़े भड़ सिहर ॥ २ ॥ भाजै छांळ खरड़कै पड़ै न पिंड देतो I देवड़ा राजपूतोंकी चीवा शाखाके जैताके संबंधका गीत । ( गीत डिंगल - काव्यका एक प्रसिद्ध छंद है ) । 2 आढ़ा जातिके प्रसिद्ध चारण कवि दुरसाका कहा हुआ | 3 जोधपुर के मोटे राजा उदयसिंहने सूरा देवड़ाके वेटे - सांवतसी, तोगा और पताको मारा तव चीवा जैता काम आया | 4 इस गीत में सोमाके वंशज चीवा जैताको दांन वाले बड़े वाराह और उसके शत्रुनोंको शिकारियोंके रूपमें वर्णन किया है । गीतका भावार्थ श्रेष्ठ एकलगिड़ वाराहकी भांति सोमाके वंशमें तिलक रूप जैता चीवाको कई राठोड़ोंने घेर लिया है । जैता उनमें दांती रूप अपने खड़गसे शत्रुग्रोंमें कहर मचाता हुआ और भालेसे रक्त सींचता हुआ युद्ध कर रहा है ॥ १ ॥ जैता रूप एकल-सूकरके ऊपर सलखा रूप शिकारीके भाले वन टूट रहे हैं । किन्तु जैता नहीं गिर कर आगे ही बढ़ रहा है। उनको गिरा नहीं सके ॥ २ ॥ रणक्षेत्र याधी दूर पहुँच जाने पर ज्योंही वह ललकारा गया त्योंही वह अधिक भोपा रूपसे होकार करता हुआ शत्रुओं पर टूट पड़ा और जन-जनको अलग-अलग पहुँच गया || ३ || चल रहे हैं और उनके बड़े-बड़े शूरवीर योद्धा
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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