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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १४३ कनै धणी-धोरी छै' । राव मानसिंघरै बैर बाहड़मेरी थी, तिणरै पेट आधांन थो । राव मानो मुवो तद पछै बेटो जायो । नै राव सुरतांण विजो कहै छै त्यूं करै छै। पिण देवड़ो सूजो रिणधीरोत-रावरै काको, तिको भला २ रजपूत, भला. २ घोडा राखै छै, सु विजानूं सुहावै नहीं । विजो जाणै छै मांनारो बेटो तेड़ाऊं । सुरतांणनै परो काढूं। तो सूजो मारियो चाहीजै' । तरै प्रापरानूं कह्यो -"सूजो मारो" तरै सिगळे " कह्यो-"या वात मत करो। सीरोहीरो धणी सुरतांण हुय निवड़ियो"।थे रावरोकाको मा मारो।" पिण विजो किणरो कह्यो मांनै' ? देवड़ा रावत सेखावतन कह्यो। रावत बालीसा जगमालरै डेरे सूजानूं मरायो। देवड़ो गोयंददास देवीदासरो डेरा कनारे थो । विजो सूजारै डेरे घोड़ा असबाब लूटण प्रायो, तरै गोयंददासही बाज मुवो" । राव मांनारो बेटो बाहमेर थो, तिणनूं देवड़े विजै तेड़ायो थो", सु निजीक आयो । विजो सांमी चढ़ियो" नै राव सुरतांणनूं सैहर-बंद करी काळधरी गयो नै आपरा रजपूत कनै राख गयो। कह गयो--"सुरतांणनूं इण अोरा मांहेथी बारै नीसरण मत देजो" । पछै राव जांणियो-विजो पालो आयो हुवो मोनूं मारसी । तरै एक देवड़ो डूंगरोत भलो रजपूत थो, एक चीबो हुतो। तरै उण डूंगरोतनूं समझायो । कह्यो-"तूं मोनूं काढ़ि, तो ढबावणवाळो हूँई छु।” उण कह्यो-"राव ! जांणू छू, सको सु सहु करो।" कह्यो-- I राव सुरतानके पास विजय कर्ता-धर्ता है। 2 राव मानकी पत्नी वाहड़मेरी थी। ( राव मानसिंहकी पत्नी वाड़मेरके रावकी कन्याथी)। 3 उसके गर्भ था। 4 राव मानके . मरनेके बाद उसके पुत्र हुआ। 5 मानाके पुत्रको बुला लूं। 6 सुरतानको निकाल दूं। 7 किन्तु इसके लिये सूजाको मरवा देना चाहिये । 8 तव अपने वालों को (अपने मनुष्योंको) कहा। 9 सूजाको मार दो। 10 तब सवने कहा। II सिरोहीका स्वामी सुरतान हो चुका। 12 अाप राव सुरतानके चचा सूजाको मत मारो। 13 परन्तु विजय किसकी सुने? 14 देवीदासका पुत्र गोविंददास उस समय सूजाके डेरेके पास था ।15 तव गोविंददास भी लड़कर मर गया। 16 बुलवाया था। 17 स्वागत करनेके लिये सामने गया। 18 और राव सुरतानका सैर (घूमना-फिरना) बंदकर कालंद्री चला गया ।19 और यह कह गया कि सुरतानको इस कोठरीसे बाहर नहीं निकलने देना। 20 रावने यह जान लिया कि विजय लौट कर आते ही मुझे मार देगा। 21 तू मुझको बाहर निकाल, तुझको शरण देकर रखने वाला मैं ही हूँ। 22 उसने कहा, राव! यह मैं जानता हूँ, आप जो कर सको वह सब करो।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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