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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १११ ११ दूदो - लकड़खांनरो। जैसा भैरवदासरी बेटी जसोदारो । ११ जीतमल । ११ नरहरदास । १२ सांईदास । बूंदीरे वणखेड़े । १३ रूपसी । १३ प्रतापसी । १३ सकतसिंघ । ११ रायमल । १२ रामचंद | तिरै वंसवाळा पीपलू छै । । ११ राव भोज सुरजणरो । ग्राहाड़ा हिंगोलारी बेटी कनकावतीरा पेटरो' । कोई कहै जगमाल लाखावत आहाड़ारी बेटी । हाडा सुरजनरो वडो इतबार रांग ऊदै कनै परगना ७ पटै दीना । गढ़ रिणथंभोररी कूंची देने थांणादार कर राखियो । रांणै ' उदैसिंघ सांदू रांमारै मांमलै सीसोदियो भांणो गोती' हाथसं मारियो । तरै आप द्वारकाजी जात पधारिया तरै सुरजन साथै हुतो । तद रिणछोड़जी द्वारो इसड़ो न हुतो' । पछै सुरजन दीवांण कना हुकम मांगियो, कह्यो - "कहो तो हू रिणछोड़जीरो देहुरो फेर कराऊं ?" दीवांण कह्यो - " भली वात ।” तरै सुरजन रिणछोड़जीरो देहुरो हमार विराजै छै सु करायो । पछै संमत १६२४ अकबर पातसाह चितोड़ तोड़ियो । रा० जैमल, ईसर सीसोदियो, पतो जगावत कांम आया । पाछा वळतां रिणथंभोर घेरियो । वरस १४ सुरजननूं . I कनकावतीकी कोख से उत्पन्न । 2 कोई कहते हैं कि लाखाके पुत्र जगमालकी पुत्री से उत्पन्न | 3 हाडा सुरजनका राना उदयसिंहके निकट बड़ा भरोसा | 4 सांदू रामाचरणके लिये अपने गोत्री भांरणाको राजाने अपने हाथसे मार दिया था । 5 तब श्री द्वारका के रणछोड़जीका मंदिर ऐसा नहीं था । 6 तव सुरजनने श्री रणछोड़जी का मंदिर जैसाकि प्रवतक बना हुआ है--नया बनवाया ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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