SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० __मुहता नैणसीरी ख्यात हरराज गांवरा मैणां प्रावतो दीठो'। तद मैणातो सरव नासगया न घरां माहै पैठा। नै देवो प्रोळरै बारै आयो नै देवै हरराजनै आवतो दीठो। हरराज देवैनै दीठो। देवै घोड़ेनू चढ़ कोरड़ो' वाह्यो । तद हरराज पाछा फेरिया । देवै वांस घातिया । वीच 'वाहको १ ऊंडो हुतो सु हरराजरो घोड़ो डाक पैलै तीर जाय ऊभो। वेऊ घोड़ा आमां-सांमां कर ऊभा रह्या । वात हरराज देवैनू पूछी"थे कुण° ? कठासू आया" ?" तरै देवै प्रापरी हकीकत कही-"चहुवांण बूदीरो देवो म्हारो नांव छै ।" तरै कह्यो-'थे अठै कद आया ।' तरै कह्यो-“मास च्यार हुवा ।" कह्यो-"हमैं कासू विचार ?" तद देवै कह्यो-'म्हे थां ऊपर वीड़ो लियो छै । अठै वळे आवस्यो तो थांनू मारस्यां" । पछै हरराज कह्यो-"हमैं पछै हूं नहीं अावू' तरै माहो-मांहे सुख हुवो। नै पागड़ा छाड़िया", उतर मिळिया। तठा पछै कितरैएक दिन देवै हरराजनू आपरी बेटी दी। सु वा देवारी वेटी निपट फूटरी छै । तद मैणो वडेरो छै तिको देवानू कहै-"म्हांनू परणावै10' इण घणा ही उजर किया । मैणा मानै नहीं । तद वेटी देणी करी। पछै हरराज डोड कोसीथुर सोळंकी सगा रहता तिके तेड़ मीणांनू सड़ां मांहै घात कूट-मारिया। देवै वूदी इण ..... तरै लीवी। अथ हाडांरै पीढियांरी विगत-- . १. राव लाखण-नाडूल धणी। . .. २. बली। 1 उस अोरते मैणों ने हरराजको प्राते हुए देखा। 2 घरों में घुसगये। 3 चाबुक । 4 मारा । 5 पीछा लौटाया। 6 देवा उसके पीछे हुआ। 7 बीचमें एक गहरी छोटी नदी थी। 8 कूदकर, लांघकर 1 9 दोनों। 10 तुम कौन ?। 11 कहांसे आये ? 12 वूदीका रहने वाला चौहान देवा मेरा नाम है। 13 तुम यहां कब आये ? 14 अब क्या विचार है ? 15 हमने तुमारे विरुद्ध बीड़ा उठाया है अर्थात् तुम्हें मारनेका निश्चय किया है। 16 यहां फिर कभी प्रावोगे तो तुम्हें मारदेंगे। 17 घोड़ोंसे उतरे और परस्पर अंक भरकर मिले। 18 अत्यन्त रूपवती है। 19 मुझको व्याह दे। 20 उसने बहुत ही एतराज किया। ... 21 राव लाना बड़ा वीर और नीतिज्ञ था। इसने नाडोलको अपने अधिकार में कर लिया था। यह सांभर नरेश वावपतिराजका छोटा पुत्र था। 22 कई प्रतियोंमें लाखणके वाद 'गोहित' वा 'सोही' नाम लिखा है और 'सोहितके' बाद 'वली' वा 'बलराज' मिलता है। यही गुद्ध है।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy