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[ राजस्थान पुरातत्वान्वेषण मन्दिर, जोधपुर
अन्त- स्निग्धा अविरला चासो विभा दीप्तियच श्रनच्छविभा श्रलकानां केशानां श्रन्ता
यस्याः सा श्रनच्छविभालकांता ॥
इति श्रीचतुविशति जिनसंक्षेपतो वृत्तिः समाप्ता ।
७४४४ (१)
चोवीसी
इस गुटके में निम्न कृतियाँ हैं - १. आनंदघन चोवीसी. २ संग्रहणी सूत्र ३ जीवविचार प्रकरण ४ नवतत्त्व. ५ दण्डक प्रकरण. ६ सप्तस्मरण. ७ प्रतिक्रमणसूत्र ६ पांच तिथि थुई. १० स्तुतिस्तवन. ११ गोतम रातो. १२ स्नात्रपूजादि. १३ चौडालिया. १४ थूलभद्र नवरसो. १५ बार भावना. १६ आनंदघन वहीतरी. १७ पनरे तिथिरी थुई. १८ पंचसंधि (सारस्वत प्रक्रिया) १६ सिंदूरकर यादि स्तोत्रस्तवन ।
पंच परमेष्ठि- नमस्कारार्थ
३७.
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६५. ४२६८
६१.
प्रादि- श्री जिनाय नमः । नमो अरिहंताणं ।
माहरउ नमस्कार श्री अरिहंत भगवंत नइ हुउ । किसा छड़ ते अरिहंत जीय अरिहंते राग द्वेष रूपिया ग्रहरि वरी जीता न अठारे दोपे रहित इत्यादि ।
१०१.
ग्रन्त- माहउ नमस्कार पंचांग प्रणाम त्रिकाल वंदरगा सदा हुई । इति श्री पंचपरमेष्ठिनमस्कारार्थः सम्पूर्णः ||
४०२५
भक्तामर स्तोत्र
आदि- इनही पछड़ आप घरे पाछा श्रावी राजानी सेवा करिया लागा पूर्तिली रीतइ आदि ।
अन्त- अन इन्वत्तिकरी मानतुंग सूरि इं रची, मई इस ताहरा स्तोत्र रूपिणी पुष्पमाला जे कठ कंदलि धरइ तेह नह लक्ष्मी स्वयंवर वरइ ॥ ४४
इति भक्तामर स्तोत्र- प्राकृत वार्तिकवृत्ति समाप्तम् ॥
भक्तामर भाषा
भाषा भक्तामर कियो, हेमराज हित हेत । जे नर पढ़े सुभाव सो, ते पावे सिव खेत ॥
इति श्री भक्तामर भाषा संपूर्ण ।
७४५०
भक्तामर भाषा प्रादि १८ कृतियाँ
इस गुटके में निम्न कृतियाँ हैं - १ भक्तामर भाषा हेमराज कृत १ - १६. २ चौंसठ योगिनी नाम तथा घंटाकर्ण १७ - २१. ३ कल्याणमंदिर भाषा २२- ३२. ४ चैत्यवंदन २-४ ५ भक्तामर स्तोत्र ५-१७. ६ कल्याणमंदिर स्तोत्र
सिद्धसेन कृत १७ - २६.
स्तोत्र
संग्रह आदि १३ कृतियाँ
७ लघु शांति २९ - ३३.८ प्रजित शांति ३३-३६ ३६-५१. १० शक्ति मंत्र ८३-८४ ११ पदस्तवन ८४-८९ १३ सोलह पद ११५ - १३० १४ स्नात्र प्रष्ट प्रकारी नवपद पूजा १३१ - १६५. १५ वीस
१२ वसुधारा ६०-११५.
१००. ६२७७