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हस्तलिखित ग्रन्थ सूची, भाग-२, परिशिष्ट-१ ] अन्त- जइ इच्छह परम पयं अहवा कित्ति सवित्थडं भुवणे । ता तेलक्कुद्धरणे जिणवयणे फु प्रायरं कुणह ।। ४०
इति श्रीअजितशांतिस्तवः । ४३६२
एकादश गणधर स्तवन आदि- गोयम गणहर पढ़म संघयणं ।
तित्थंकर वीर जिरा पढ़मसीस सोवन समारणउ ॥ इत्यादि ।। १ अन्त- इय समयज्जत्ति सव्यसत्ति चित्त भत्ति वन्निया।
वैशाख सुदि इग्यारिसि दिनि वीर नाहइ थापिया ।। ए सयलगणहर ए इग्यारसि जे प्रागहइ भाविया ।। एतवन भणसि भाव सुणसि ते लहइ सुख सपया ॥ ५
श्रीप्रभासगणधरस्तव । इति श्री एकादशिदिनसम्बन्धि श्री एकादशगणधर स्तवनं सम्पूर्ण ।। २०. ४०३०
कायस्थिति स्तोत्र आदि- श्री पन्नवणा भगवती माहि थकी उदार करी गीतार्थ पूर्वाचार्य कायस्थिति
नउ स्तवन करइ छइ। आदि गाथा-जहतु हदसण रहिउ कायठिई भीसगे भवारत्ने ।
भमिउ भवभय भंजणा जिणिदत्तह विन्न विस्सामि ।। १
जह कहतां जिम हे जिनेश्वर तुह दंसण रहिउ, ताहरइ..'आदि । अन्त- बहु सो अनन्ती वार हिव घणइ पुण्य तणइ
उदय सांप्रत तुझ कुमइ दीवं उछइ । ता तस्मात्तिणि कारणि अकाय नहीं काया जिहां एहवा जे सिद्ध तेह तउ पद मुक्तिपद तेहती संपदा हे तीर्थंकर द मुनइ ॥ २४
इति श्रीकायस्थितिस्तवनबालावबोधः समाप्तः । २५. ४३६३
गौतम दीपाली का स्तवन श्रादि- इन्द्र भूती गउतम भणई तिसला कुखि निधान ।
ज्ञात पूतनूं पामीउ दइ मुझ मुगतिनो दान ॥ १ अन्त- देव गुरु भगत्यिमी सुगती वर अरगुसरो।
सकल कहि हीर गुरु गुण विचारो ।। ७५ जिन वचन दीप दीपालिका राजती।
इति श्री गउतम दिपालिकालि स्तवनम् ॥ २६. ४५६६
चतुविशति जिनस्तोत्र ____ आदि- जाड्यध्वंसकृते नत्त्वा नाभेयप्रमुखान् जिनान् ।
____ अात्मनः स्मृतये वक्ष्ये यमकस्तुतिवृत्तिकाम् ॥ १