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. हस्तलिखित ग्रन्थ सूची, भाग-२ परिशिष्ट - १ ]
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कविकल्पलता
अथ श्रीसारकृत बावन्नी लिप्यते ।
आदि - || र्द० ॥ ॐकार पार पार तसू कोइ न लभ्यै । सबर कर सिरताज मंत्र धुरि कवियणभ्यै || अरधचंद आकार उवरे मीडो जसु सोहै । जै ध्यावै चित लायतिकै तिहुयरण मन मोहे || साधक सिध जोगी जती जासु ध्यांन ग्रहनिस करै । कवि सार कहै ॐकार जप कांइ सैरण भुलो फिरें ॥ १
अन्त - क्षिते मंडल क्षिति तिलक सहर पाली पुर सोहै । गढ मरु मंदिर महिल बाग वाडी सनमोहै ॥ राज करें जगनाथ सुर सामंत र सवायौ । सोनगरे सुसमथ सुजस वसुधा वर तायो ||
संमत सोलै निव्यासियै श्रासु सुदी दसमी दिने ।
श्रीसार कवित बावन कह्या सांभलिज्यो साचै मनै ॥ ५५
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इति श्रीकविकल्पलता श्रीसारकृते संपुर्ण । सुभं भूयात् ॥ श्री संवत १८७८ रा
मती फागुण सुदी १० स श्री श्रीगुरांजी श्रीवेनरामजी । लीषतां कु. इन्द्रभाग वाचनारथम् अरणदपुरमध्ये ।
१०५. ४४१५ (१६)
कागदरी तकल
इस गुटके में पत्र सं० ३९८ से पत्र सं० ४०६ तक चार कागज़ों प्रेम ( पत्रों) की नकलें दी हुई हैं, जो इस प्रकार हैं—
पहली नकल । श्रादि- कागदरी नकल ।
छंद नराच— मते हत सांभर नगरं सुधरं । प्यारी निज हाथ दियो पतरं । सूभवांन कथानक सुंदरियं । छिव गात अनंत चित हरियं ॥ १ सलिता सर निसर नीर वहै । नलनि सूंभ वास धरै र लहै । वहुवास निवास न कुप वने । वनिता गनि तीर सूनीर थनै ॥ २
अन्त- दिन जात वृथा तुम संग विना । कबहु सुष होत न आप विना । कहता ज रजौ समचार सवै । सु मिथ्या तन मांनहु भांग कवै ॥ १७ न लिषे तुम पत्र सनेह घनी । पय जावनकी तुम रीत गनौ ।
जुग रांम वसु ससि संवत यं । सुभ मास तथी सरस चरयं । १८ इति ॥ [ संवत् १८३४ ]
दूसरी नकल
आदि - कागदरी नकल लीषते । स्वस्त श्री मुकानगर सुधाने सुकल सुभ श्रोपमा केलास क्यारी, प्रेमरसप्यारी, चंदवदनी, मृगलोचनी, लगनरी लडी, जीवरी जडी, हीयारी हार, सेजरी सिणगार, प्रीतमरी पीलार, चितरी ऊदार, हसतमुपी, सदा सुषी... 1