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[ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जोधपुर
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अन्त- सव सरषी नारी नहीं, सव सरपी नहीं वारण ।
सव गुण एकगामें नहीं, दापु चतुर सुजाण ।। ६२ इती अोपमा लिषगरी, जथाजोग मत जांग ।
कहत दुलैमल चुप सु, रुप चुप परवांगा ।। ६३ ।। संपुर्ण । तीसरी नकल
आदि- सिध श्री प्यारी दिसे, जैपुर नगर जठेह ।
प्रीतम लिषत वरणायक, नित २ नवल नेह ॥ १ चंदवदनि मृगलोचनी, चिता लंक सुचंग ।
गजगमणि रस जोग है, अतहि जांण सुचंग ।। २ अन्त- वाहू उतर देजो सदा, कागद अधिक उजास ।
हित कर लिषजो हेतसुं, दसकत अपणा पास ।। २० संपुरण ।। चौथी नकल
आदि- सिध श्री सरवोपमा विराजमान अनेक प्रोपमालायक गुणनिधान वहोतर कलासुजाण, चवदै विध्यानिधानं, सूरज जेहा तेज, चकवा चकवि जिहा हेज, चंद्रमा जेहा सितल, रूपा जेहा ऊजला...... । अन्त- मत किणहिसु लागजो, नैणाहंदो नेह ।।
धुके न धुवो नीसर, जलै सुरंगी देह ॥ १८ सजन फलजो फूलजो, वड जूं विसतरजो। नालेरां जु लूंबजो, प्रांवां जु फलजो ॥ १६
____ इति श्रीपत्री संपुर्ण । २५७ ४६१४ (५४)
जोगी रासा आदि- अथ जोगी रास लीपीते ।। ॐ नमः सीध्ये भयो नमः ।।
प्रादिपुरिप जो आदिजगोत्तमु, आदिनाथो । आदिजुगोत्तमो जोग पयसो, जय जय जय जगनाथो ॥१ तास परंपर मुनिवर हुअा, दीगांबर सहिनाणी।
कुदकुदाचरज' गुरु मेरै, पाहुजी कहिय कहाणी ।। अन्त- जोगीह रासो सीपहु श्रावक, दुष न कवहु लहिसी। जौ जिणदासह त्रिविधि हि, सिबहु समरण कीजहू ।। ४२
ईती जोगीरासो संपुरणमस्तु । २६१. ५४१८ (५४) टंडाणा गीत आदि- टंडारणा टंडारणा वे, जियड़े टंडारणा टंडारणा ॥
इत संसारै दुश भंडार, क्या गुण देपि लुभारणा छ ।।
जिन ठग गिया नादइ काल, फिर तस जोग पत्याणा छ । १. कुन्दकुन्दाचार्य ।
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