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[ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जोधपुर ३० ७७४३
अध्यात्मरामायण भाषा प्रादि- श्री गुणेसाये नीम | सुरसती नीमो।। श्री सीतारामजी सत छ जी ।। श्री रामाये नमा ।। कयेतं अधातम रामायने भाषा लीपतं रामहृदयं ॥ राज श्रीराजसंघजी सभापीत । चौपई- जवै भुव भार भयों दुष्टनते । तव ही देव गये जाचन प्रभु ॥ . .
चिदानंद सुंनी बदस वानी । परजापते असतुते ही ठानी ।। २ तीन सुप्त सन भेये भगवाना। चीदानंद यनकी सब जाना ।।
मेव गिरा वानी जु वुचारी । सुनीक व्रमा सते वीचारी ॥ २ अन्त- दुहा ॥ राम हीरदैको राजैदानीते प्रीते करते वुचार। .
सीय्याराम हीरदै बसैय्या समे नाहे वीचारै ॥ ६५ राम हीरद भाषा अरथै कीनी मते वुनमानै ।
सुनी कह रीज न धारी है करीये मते अपमान ।। ६६ ईती श्री अधातैम रामाणे राम हीरदये भाषा-अरथ सपुरन ॥ कथेते म्हाराजे श्रीराजसीधजी ॥ सुभ समुरथ। ८५. ५२११
कछवाहोंको वंशावली आदि- ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ अथ कुछावांकी वंशावली लिप्यते ।।
श्रीआदिनारायणतं कवलमै ब्रह्माजी ॥१॥ मारीच ॥२॥ कस्यप ॥३॥ सूर्य ॥४॥ ववस्वान ।।५। मनु ॥६।। इष्वाक ॥७॥ विकुपि ॥८॥ पुरंजय ॥६॥
अन्त- महाराजाधिराज जन्म नांव मोहोनसिंघ नरवलका राजाको वेटो सो राज. पायो । जदि मानसिंघजी नाव पड़यो। मीती पोस बदि ६ सं० १८७५ का । राज कीयो महीना ४ दिन ६!! माहाराजाधिराज श्रीसवाई जयसिंघजी संवत १८७० कै साल श्रीजमवायजी . पधारया जाति देवा । सब माज्यां साथ पधारी मीती असाढ सुदि ८ संवत १८८४ क साल । .
७७२० (२२)
कपडकुतूहल आद्य अंश खण्डित है । उपलब्ध रचनाका प्रारंभ इस प्रकार है
..."ढि पिलंग पर सुंदर ढोलिय वाय ॥ १३ मसी जर सु मो मन भयो, प्रीउ ढोलिए वोलाय। माल मुहंगीधे लीजिये, सो माहरइ भावी दाय।। १४ तन सपुकी साडी चरणी, कंचु वण्यो सुचंग ।
रतन जडीत नीरपीः, सोनी सुंदर अंग ॥ १५ अन्त- कचीयो पेम पछेवडो, कोधो सेज तीपार ।।
तिण वेलां मंदिर गई, प्रीउ मारण्इ तिणि वार ।। ३१ प्रीयांग गंगदास सूत, नगर उदैपुर वास । कपडकुतूहल कीधा, वणी देहिं दुवात ।। ३२
इति कपडकतुहल संपूर्णः ।। .