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क्रमांक प्रन्थाक
७१ | ३०६३ नत्रतत्वमहालाबोध ७२ / ३५७५ | निगोदविचारस्तवन
(8°)
७३ | २११६ | पचनिर्ग्रन्थी करण
सवालावध
७४ | १८६३ |पंचमेरुपूजा ७५१०६८ पचसंयत प्रकरण
मन्थनाम
सस्तबक
७६ | १५७३ - पचाशक
カウ
१५७२ |पचाशक १०५७ पर्यन्ताराधनाप्रकरण
७
७६ | १०८३ | पर्यन्ताराधनाप्रकर
सस्तवक
१०६३ | पर्यन्ताराधनाप्रकरण
सस्तबक
८१ १०६१ पर्यन्ताराधनाप्रकरण
८०
८२
24
सस्तबक
७० | पर्युपणाष्टा हिकाव्या
ख्यान
८३ १०६४ पिण्ड विशुद्विप्रकरण छायासहिन ६२ | प्रकृतिविच्छे प्रकरगादि प्रकरण चतुष्क
८५
८५ प्रबोधचिन्तामणि
८६ १०३८ प्रव्रज्याविया नकुलक १५७१ प्रशमरति प्रकरण सटीक
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त्रिपाठ
जैनप्रकरण
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कर्त्ता
क्षमाप्रमोद
वा मेरुसुन्दर प्रारा गू १६४१ '
हरिभद्र
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सोमसूर
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रा०
मू० जीवविजय प्राः स्त०
भाषा
रागू० १८७५ २०वीं श.
जयशेखर
27
राःगूः
प्रा
लिपि - पत्रसमय संख्या
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प्रास्त:
१६वीं श.
१८२४
१७००
१७वीं श
१८वीं श.
१७५२
रागू
प्रास्त० १८वीं श.
रागू० प्रास्त० १६११
रागू संस्कृत १६वीं श
मूत्र जिनवल्लभ प्रा छा सं १६२२
जयतिलक
संस्कृत १६६३
२०वीं श १७वीं श.
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प्रा०
| संस्कृत | १=वीं श
६८
१६५
१६६
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४
-११
-३६
३५
४
६
५.
Ε
६
२१
५६
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५०
1 १८७
विशेष
-हाला कंदी में लिखित ।
सत्यपुर में रचना ।
प्रत्यपत्र में संवत् १७८३ उ० मेघविजयें लीधी छई इस प्रकार पुष्पिका है। उपाध्याय मेघविजय प्रसिद्ध जैन विद्वान् है ।
मंडपावर्ग में लिखित |
जीर्ण प्रति है ।
'प्रकृतिविच्छेद प्रक २. सूक्ष्मार्थसंग्रह ३ प्रकृति
स्वरूपसरूपण ४. स्वामिलप्रकरण ।