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जैनप्रकरण
[ १८५
समांक प्रन्थाङ्क
पत्र
प्रन्यनाम
___ फर्ता
भाषा
लिपिसमय
___ विशेष
३३ / १२४
१६६
द्विवाठ
३२/ ६५६ क्षेत्रसम सकरणी
वत्सराज रागू० १७वीं श. १३ | सं. १६६५ में रचना। वालावबोध
क्षेत्रसमासटीका मलयगिरि स० १५वीं श. १५३ । सुरगिरि में लिखित। ३४ | ३४६३ | क्षेत्रममास बाजावबोध | मू० रत्नशेखर रा.गू प्रा./ १६८४ | १० सहित
टी० दयासिंह
गणि ३५ ३६१६ / क्षेत्रसमास सबाला मू० रत्न रोखर , १७६६ ४५ / विक्रमपुर में सवत् कबोध टी० उदयसागर
१६८६ में लिखित | उदयपुर में बालावबोध
रचना। २११५ क्षेत्रसमास सबालावबोध
, १६८४ १६ गुणस्थानक्रमारोह
सं० १७वीं श. १७ प्रकरणवृत्ति १३६ गौतमपृच्छासबातावबोध
प्रा.वा.रा.१७वीं श. ६ | गौतमपृच्छाबालावबोध
१५३२ ६ राजपुर नगर में
लिखित । २०२७ गौतमपृच्छासवाला- | बाजिनसार , १८५३ / ४१ पेसूबानयर में वबोध
लिखित । ३४७६ गौतमपृच्छासवाला
१८वीं श. १२ वबोध द्विपाठ ३४६२ गौतमपृच्छासबाला
" १७वीं श. वबोध द्विपाठ ३६१७ | गौतमपृच्छा सवाला
" | १७६१ | ३७ ।
मूलत्रांणनगर में वबोध
|-लिखित। १०५ गौतमपृच्छात्तिमहित | वृत्ति श्रीतिलक मू.प्रा.सं.१५वीं श २ ३५२३ गौतमपृच्छा सार्थ
मू प्रा रा. १७वीं श. ५ चतुरनकोश पृथ्वीधराचार्य सं० १६वीं श. १२ चतुर्विशतिजिनकल्याण
प्रा० १७वीं श१0वां वर्णन चातुर्मामिकल्याख्यान | समयसुन्दर संप्रा० १७४७६ कृष्णदुर्ग मे लिखित। चातुर्मामिक-याख्यान
| सं० १८वीं श. ६ ६५६
चातुर्मासिकव्याख्यान | सूरचन्द्र रागृ० १८वीं श. १२ बालावबोध | चातुर्मासिकव्याख्यान
प्रथम तथा अंत्यपत्र । बालात्रवोध
शोभना
७००
२८६३
(७१)
દરદ
१७वीश